पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४६६

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अभी अनेकवर्णमध्यमाहरणम् । प्रकृति से लाओ यहां पर भी कनिष्ठ प्रकृतिवर्ण का मान होगा और ज्येष्ट उस पक्ष का मूल होगा फिर उन मूलों का यथोचित समीकरण करके वर्णमानों को सिद्ध करो, यदि ऐसा करने से भी वर्गप्रकृति का

  • विषय न होवे तो जिसभांति वर्गप्रकृति का विषय होसके सो अपनी

बुद्धि से जानो, यदि बुद्धिद्वाराही जानना है तो बीजगणित का क्या प्रयोजन है, तब इस शंकाका समाधान करते हैं-गणकरूपी कमल के विकास करने में सूर्य ऐसे जो पूर्व आचार्य उन्होंने मन्दजनोंके बोके लिये यावत्तावत् आदि वर्गों के द्वारा फैलाई जो बुद्धि वहा इससमय की बुद्धिही में बीजगणित के नाम को प्राप्त हुई ( अर्थात् पूर्व संप्रति बीजगणित के नामसे पुकारी जाती है और यावत्तावत् आदिक वर्णसमूह उसके सहकारी हैं ) इदं किल सिद्धान्ते मूलसूत्रं संक्षिप्तमुक्तं बालाव- किंचिद्धिस्तार्योच्यते-सूत्रम्- बोधार्थ एकस्य पक्षस्य पदे गृहीते द्वितीयपक्षे यदि रूपयुक्तः । अव्यक्तवर्गोऽत्र कृतिप्रकृत्या साध्ये तथा ज्येष्ठ कनिष्ठमूले ॥ ७२ ॥ ज्येष्ठं तयोः प्रथमपक्षपदेन तुल्यं कृत्वोक्तवत्प्रथमवर्णमितिस्तु साध्या | ह्रस्वं भवेत्प्रकृतिवर्णमितिः सुधीभि- रेवं कृतिप्रकृतिरत्र नियोजनीया ॥ ७३ ॥