पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४६५

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बीजगणिते - माणसूत्रे पूर्वोत्तरार्धयोश्चन्दो भेदोऽस्तीति कस्यचिद्भ्रमः स्थाचन्त्रि- रासार्थमाह -तत्र श्लोकोत्तरार्धादारभ्येति । यदिह प्रथमतोऽर्षं पठ्यते न तत्पूर्वार्ध किंतु 'भूयः कार्य: कुडकः- ' इति माकपठितपूर्वा- स्य श्लोकस्योत्तरार्धमित्यर्थः । अथ शालिन्युत्तरार्धेनोपजातिकाद्व- येन च मध्यमाहरणस्येति कर्तव्यतामाह-वर्गाद्यमिति | इदं सार्धसूत्र- द्वितयमाचार्येरेव विद्वतमतो मया न व्याक्रियते । ' वर्गमकृत्या विषयो यथा स्यात्तथा सुधीभिर्बहुधा विचिन्त्यम्-' इत्युक्तं तत्र यदि बुद्धयैव विचिन्त्यं तर्हि किं बीजेनेत्याशङ्कायामुत्तरं सिंहोद्धृतयाह-बीजमिति । अस्याप्यर्थ आचार्येव विद्युतः । अनेकवर्ण मध्यमाहरण- जहां पर पक्षोंके समशोधन करने से अव्यक्त वर्गादिक अवशिष्ट रहें वहां एक पक्षका वर्गमूल उक्तवत् 'पक्षौ तदेष्टेन निहत्य किंचित् इत्यादि प्रकार से लेना चाहिये और दूसरे पक्ष का मूल वर्गप्रकृति से, पर्य यह है कि दूसरे पक्ष में अध्यक्त वर्गसरूप होवे तो वहां जो अव्यक्त वर्गीक है उसे प्रकृति कल्पना करो और रूपको क्षेप, बाद इष्ट को कनिष्ठ कल्पना करके ज्येष्ठ सिद्धकरो तो कनिष्ठ प्रकृति वर्णका व्यक्त मान होगा और ज्येष्ठ दूसरे पक्षका मूल, अनन्तर उन दोनों पक्षोंके मूलों का समीकरण करो यदि वर्ग प्रकृति का विषय न होवे तो उसका अन्य वर्ण वर्गके साथ समीकरण करो और अन्यमिति तथा आद्यमिति सिद्ध करो, तात्पर्य यह है कि यदि अन्यपक्ष में इष्टव्यक्तवर्ग साव्यक्त होवे, अथवा अव्यक्तही रूपसे सहित या रहित होवे तो वर्गप्रकृति का विषय न होगा ऐसी दशा में उसका अन्यवर्ग के साथ समीकरण करके पूर्व रीति के अनुसार एक पक्ष का वर्गमूल लो और दूसरे पक्ष का मूल वर्ग-