पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४५९

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बीजगणिते---- या ३० का ५४६ रु ५४६ या १५०० का २७४५० रु १६३७ ३ समच्छेद और छेदगम करने से हुए या ६० का १६४७ रू १६४७ या १५०० का २७४५० रू १६४७ समशोधन करने में तुल्य रूपों के उड़जाने से यावत्तावत् की उन्मिति का२५८०३ ५४६ - यहां पर मेरे प्रकार से सिद्ध किये पूर्व तुल्यही आई- p या १४६० या ३० हुए प्रथम, द्वितीय और तृतीय पण रूप ५४६ से ऊन आचार्य के सिद्ध किये हुए प्रथम, द्वितीय और तृतीय पण होते हैं और वे भी आपस •तुल्य हैं क्योंकि समान में समानही शुद्ध करनेसे उनकी समता नहीं नष्ट होती इसलिये आचार्योक्त क्रिया युक्तियुक्त है। का ५४६ शङ्का यहां यावत्तावत् का मान. -आया है इसमें तीनका या ३० अपवर्त्तन लगता है सो अवश्य देना चाहिये क्योंकि ' माज्योहारः क्षेपक- चापवर्त्यः इस सूत्र के अनुसार कुट्टक के लिये उसकी आवश्यकता पाई जाती है इसकारण अपवर्त्तन देने से. हुआ परन्तु उद्दिष्ट सिद्ध का १८२ या १० नहीं होती । देने से समाधान - यहां शेष की आवश्यकता है और शेष अपवर्तित होते हैं इस लिये उद्दिष्ट सिद्ध नहीं होती, तो ऐसे स्थल में अपवर्तन न देना चाहिये। इसी बात को ध्याय में कहा है । महाप्र .