पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४६०

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अनेकवर्णसमीकरणम् । उद्दिष्टं कुछ के तज्ज्ञैर्ज्ञेयं निरपवर्तनम् | व्यभिचार: कचित्कापि खिलत्वापत्तिरन्यथा ॥ इसभांति नवाङ्करकार श्रीमान् कृष्णदैवज्ञ ने आचार्योक मार्ग का समाधान बतलाया है। परन्तु सिद्धान्ततत्त्वविवेककार कमलाकरभट्ट ने नवांकुरेऽपि बीजोत्थे कुक्कानपवर्तने । ( सिद्धान्तसंमतिर्योक्ता सदर्थोऽज्ञानतोऽस्ति सा || , इस श्लोक से उक्त समाधान को दोषग्रस्त ठहराया है। अब जिसभांति अपवर्तन आदि का सन्देह न होवे वैसा कहते हैं- क्रयका मान या १ और विक्रय ११० है केवल कप या १ में विक्रय ११० का भाग देने से जो लब्धि आई उसे ऋणशेष संज्ञक कालक १ कल्पना की. अनुपात ---एकगुण क्रयकी कालक १ लब्धि है तो षड्गुणित क्रय की क्या, इसभांति प्रथम लब्धि का ६ आई । इसी भांति अनुपात करने से दूसरी और तीसरी लब्धि आईका ८ । का १०० इन लब्धियों में १ कमकर देने से धन शेष लब्धि हुई

( १ ) का ६ ( २ ) का क ( ३ ) का १०० रु १ ये अलग अलग हर ११० से गुण देने से हुई का ६६० रू ११० रु ११० का ८८० ( ३ ) का ११००० रू ११० इनको अपने अपने गुण से गुणेहुए क्रय में घटा देने से शेष रहे ६६० रू ११० ८६० रु ११० या १००का ११००० रू ११० ( १ ) ( २ ) ( १ ) या ६ का २ ) याद