पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४३९

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बीजगणिते- राशिसियभावात् क्रियाव्यभिचार इति तात्पर्यम् । व्यभिचारस्तु कुककरणानन्तरमवसेयः उदाहरण- ऐसा कौन राशि है जिसको तेईस से गुणकर उसमें अलग अलग साठ और अस्सी का भाग देनेसे जो शेष रहें उनका योग सौ होता है । + कल्पना किया कि या १ राशि है इसको २३ गुण देने से या २३ हुआ इसमें साठ का भाग देने से कालक लब्धि आई और अस्सी का भाग देनेसे नीलक लब्धि आई। अब अपनी अपनी लब्धि से गुणे हुए हरको तेईस से गुणे हुए राशि में घटादेने से शेष रहे । या २३ का ६० १ या २३ नी ८० इन दोनों शेषों का योग ४६ का ६०. नी ६० यह १०० के समान है इसलिये समीकरण के अर्थ न्यास |

या ४६ का ६० नी ८० रू० या का०. नी० रु १०० समशोधन करनेसे यावत्तावत्की उमितिका ६० नी ८० रू १०० दो का अपवर्तन देने से का ३० नी४० रु५० या २३ यहां यावत्तावत्की उन्मिति भिन्न आती है उसको कुक द्वारा अभिन्न करनी चाहिये वहां 'अन्येऽपि भाज्ये यदि सन्ति वर्ण:- " इसके अनु सार कालक अथवा नीलक इन दोनों में से किसी एक वर्ष का मान व्यक्त मानना चाहिये सो प्रकृत में प्रयुक्त है इसी बातको दिखलाने के लिये आचार्य, अत्रैकाधिक, यह सूत्र कहा है उसका अर्थ यहां भाज्य में जो एक अविकवर्ण अर्थात् कुटुकानुपयुक्त वर्ण है उसका यथेष्ट व्यक्तमान न मानना चाहिये क्योंकि वैसी कल्पना करने से क्रिया व्यभिचरित होगी ।