पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४३७

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बीजगणिते - - नीलक में शून्य० का उत्थापन देनेसे गावत्तावत् का मान २६ और कालक का मान १८ आया | आलाप-~राशि २ है, कम से ३ | ७ | ८ गुण देने से हुआ ८७ । २०३ | २६१ / फिर ३० का भाग देनेसे लब्धि २ | ६३८ और शेष २७ | २३ | २१ आये | शेष के योग ७१ में ३० का भाग देने से लब्धि २ और शेष ११ आया | यहां २ | ६ | ८ | २ इन चारों लब्धियों का योग १८ कालकमान के तुल्य है । अथवा राशि २६ को गुण योग १६ से गुण देने से ५५१ हुआ इसमें हर ३० का भाग देने से कालक मान के तुल्य लब्धि १४ आई और शेष ११ के समान रहा। यहां पर राशि या १ को गुणको से गुणकर प्रत्येक गुणनफल में हरका भाग देने से जो लब्धि आती हैं उनके योग के तुल्य यदि कालक कल्पना किया जावे तो शेषों के ऐक्य • में तीसका भाग फिर देना चाहिये इस भांति दो आलाप हुए परन्तु वैसी कल्पना करने से क्रिया का निर्वाह नहीं होता इस लिये चारों लब्धियों के योग के तुल्य कालक कल्पना करने से शेष ११ के समान स्वतः होता है इस लिये 'प्रथमालापे द्वितीयालापस्यान्तर्भूतत्वम्' यह युक्तही कहा है || - उदाहरणम्--- 4 कस्त्रयोविंशतिक्षुरणः षष्ठ्याशीत्या हृतः पृथक् । यद्ग्रैक्यं शतं दृष्टं कुट्टकज्ञ वदाशु तंम् ॥ ८६ ॥ अत्र सूत्रं वृत्तम- C काधिकवर्णस्य भाज्यस्थस्थेप्सिता मितिः । भागलब्धस्य नो कल्प्या क्रिया व्यभिचरेत्तथा ॥ ७९ ॥