पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४३६

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4 ★ अनेकवर्णसमीकरणम् | जो लब्धि आवें उनका और शेषों के योग में तीसका भाग देने से जो लविया उसका योग कालक कल्पना किया क्योंकि राशिको गुणयोग से गुणकर हरका भाग देने से शेष हरसे न्यूनही रहेगा तब लब्धि उक्त चार लब्धियोंकी युतिरूप होती है इस लिये शेष ग्यारह के तुल्य होगा । प्रकृतमें हर ३० गुणित लब्धि का ३० को गुणगुणित राशि या १६ में घटा देनेसे शेष या १६ का ३० रहा यह ११ के तुल्य है इसलिये समीकरण के अर्थ न्यास | या या १६ का ३० रू० ० का ० रू ११ कुशक के लिये न्यास | का ३० रू ११ या १६ समशोधन करने से यावत्तावत्की उन्मिति मा. ३० . ११ । हा. १६ । चली १ नी ३० रू २६ यावत्तावत् नी १६ रु १८ कालक १ १ २ १ ११ आई अव O इससे लब्धि गुण हुए १२१ । ७७ अपने अपने हारों से तष्टित करने से हुए, लब्धि के विषम होनेसे अपने अपने हारों में ८ शुद्ध करने से हुए१८ यहां लब्धि यावत्तावत् का मान और गुण कालक का मान है इष्ट नीलक १ मानने से 'इष्टाहत' इसके अनुसार लब्धि गुण सक्षेप हुए ।