पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४३२

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अनेकवर्णसमीकरणम् | सात से तष्टित करने से २ | ह ४ रू४ शेष बचे उनका घात ह ८ रु.८ हुआ लाघवार्थ इसको फिर सातसे तष्टित किया ह १ रू १ अब इसमें ७ का भाग देने से ६ शेष रहता है और लब्धि श्वेतक कल्पना की

  • बाद हर ७ और लब्धि श्वे १ का बात शेष ६ युत भाज्यराशि ह १.

रू १ के तुल्य हुआ ह १ खे० रू १ हृ ० श्वे७ रु ६ समीकरण करने से हरितक की उन्मिति अभिन्न है इसलिये कुक की आवश्यकता नहीं है। अब श्वे ७ रु ७ इससे दूसरे राशि ह १८ रु ४६ में उत्थापन देते हैं-- १ हरितक का. श्वे ७रू ७ यह मान है तो १८ हरितक का क्या, यों श्वे १२६ रू १२६ हुआ इसमें रूप ४६ जोड़ देने से दूसरा राशि श्वे १२६ रू ८० हुआ | श्वेतक का मान शून्य • मान कर अनुपात करते हैं - एक श्वेतक का शून्य • मान हैं तो १२६ श्वेतक का क्या, यों • हुआ इंसमें रूप ० ८० जोड़ देने से दूसरा राशि ८० हुआ और पहिला राशि ५१ व्य इसभांति दोनों राशि ५१ | ८० | हुए । श्वे ७ रु ७ etween उदाहरणम्-- नवभिः सप्तभिः क्षुराणः को राशिस्त्रिंशता हृतः । यदग्रैक्यं फलैक्याढ्यं भवेत्पड्विंशर्मितम् ॥ ८४ ॥ १ ज्ञानराजदैवज्ञा:- आई यह स्वतः मार्तडेनमश्च भजनादेकोऽतो दृश्य विश्वासः स पुनद्वयं समभवत्संख्यावतां संमतः ! ऐक्यं तत्फलतोय तारकृतित्सत्तारका सखे तं जानीहि गुरूपदेशविधिना बीजं विजानाति चेत् ॥ [[अर्थान्तरे - विश्वमाप्तः | अवताराांकृत्यायित इति । सत्तारका वं परमेश्वरम् | शेषं स्पष्टम् ।