पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४२४

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अनेकवर्गसमीकरणम् । ४१६ 6 हरित में शून्य से उत्थापन देने से १४३ यह राशि आया | इसभांति १ आदि इष्ट मानने से अनेक राशि मिलेंगे । | लोहतक मान से यावत्तावत् उन्मिति पौ ३६ रू. ३५. के तुल्य लो २५ रू १८ इसमें उत्थापन देते हैं- यदि १ खोहितक का ह् ३६ रू ५ यह मान है तो २५ लोहितक का क्या, थो हृ ६०० रू १२५ हुआ इसमें रूप १८ जोड़ देने से वही बात सिद्ध हुई ह ६०० रू १४३३॥ राशि १४३ में २ का भाग देने से ७१ लब्धि आई और शेष १ रहा, तथा लब्धि ७१ में २ का भाग देने शेष रहा । फिर ३ का भाग देने से ४७ लब्धि आई और शेष २ रहा, तथा लव्धि ४७ में ३ का भाग देने से २ शेष रहा। फिर ५ का भाग देने से २८ लब्ध आई और शेष ३ रहा, तथा लन्चि २८ में धू का भाग देनेसे ३ शेष रहा ॥ उदाहरणम्- को राशी वद पञ्चषद्कविहतावेकडिकाग्र ययो- दुर्घग्रं त्र्तमन्तरं नवहता पञ्चायका स्याद्युतिः | घातः सप्तहृतः षडग्र इति तो षट्काष्टकाभ्यां विना विदन् कुट्टकवेदिकुञ्जरघटा संघट्टसिंहो ऽसि चेत्-३॥ अकल्पितौ राशी पञ्चषकवितावेदिकाप्र या ५ रू १ । या ६ रू २ अनोरन्तरं वितंडवत्र- १ यत्र ज्ञानराजदेवशाः- 2 को हररामचन्द्रहरणादकत्वम गत तद्योग: शशिभक्तितोऽमरहितो रामाहतं चान्तरम् । यदा तो विनिर इह यह वैक्यमव्याहतं निःशेषं सकलैः सुरेंद्र ले तो रावणाआादि || ३६ आका