पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४१९

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बीजगणिते - नीलक ७ का क्या, यों ह ३१५ रू २३१ हुआ इसमें रूप २१ जोड़ · देने से ह ३१५ रू २१० हुआ इसमें हर २१ का भाग देने से याव- तावत् की उन्मति ह १५ रू १० आई | तीसरी यावत्तावत् की उन्मति पी ६ रू ४३ है । १ पीतक का ह ३५ रू २८ यह मान है तो ह पीतक का क्या, यों ह ३१५ रू २५२ हुआ इसमें रूप ४२ जोड़ देने से ह ३१५ रू २१० हुआ इसमें हर २१ का भांग देने से यावत्तावत की उन्मति ह १५ रू. १० आई । यावत्तावत् क्रम से न्यास या २१ का ह १५ रू १० यावत्तावत् ह ६३ रू ४२ कालक है ४५ रु ३३ नीलक ह ३५ रु २८ पीतक यहां हरितक का मान व्यक्त शून्य कल्पना करने से अनुपात के द्वारा यावत्तावत् आदि वर्णों के व्यक्तमान हुए १० । ४२ | ३३ | २८] याव- चावत् का मान १०. पहिला शेष है इसमें १ जोड़ने से दूसरा शेष ११ हुआ, इसमें १ जोड़ने से तीसरा शेष १२ हुआ । यहां हरितक का एक आदि व्यक्तमान मानने से शेष बीससे अधिक होता है इसलिये शून्य ही से उत्थापन दिया है क्योंकि सर्वत्र हर से शेष न्यून रहता है इसलिये ४२ | ३३ | २८ ये राशि आये इन्हें क्रम से ५ | ७ | ६ से गुणदेने से २१० | २३१ | २५२ हुए इनमें २० का भाग देनेसे १०/११/१२ ये लब्धि आईं और रूपोत्तर १० /११ / १२ शेष रहे ॥ उदाहरणम्- एकाग्रो द्विहृतः कः स्याद् द्विकाग्रस्त्रिसमुद्धृतः । त्रिकाग्रः पञ्चभिर्भक्कस्तदेव हि लब्धयः ॥ ८२ ॥