पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४०५

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बीजगणिते- भा. ३ । क्षे. १ 1 हा. ४ । उक्तरीतिसे बल्ली • आई उससे लब्धिगुण १ हुए लब्धि के सम होनेसे १ १ १ ये लब्धि गुण ज्यों के त्यों रहे परन्तु क्षेप के ऋण होने से ३ इन अपने अपने हरों में शुद्ध करने से लब्धिगुण २ हुए अब हरितक इष्ट मानने से 'इष्टाहतस्वस्वहरेण- ' इसके अनुसार लब्धिगुण सक्षेप हुए ह ३ रू २ पीतक ६ ४ रू ३ लोहितक यहां लब्धि पीतक का पतिक के मान ह ३. रू २ से पूर्वागत नीलक के मान है में उत्थापन देते हैं-- मान और गुण लोहतक का मान है पी ४ रू १ नी ५ Apprentjakana यदि १ पीतक का ह ३ रू २ यह मान है तो पीतक ४ का क्या, यों ह १२ रू ८ हुआ, फिर रूप में ऋण रूप १ जोड़ देने से रूप ७ हुआ, फिर ह १२ रूप ७ इसमें हर नी ५ का भाग देने से नीलक का मान- हृ १२ रु ७ -हुआ । नी ५. . यहां हर का भाग देने से भिन्न मान आता है इसलिये ' - भिन्नं यदि मानमेवम्' भूयः कार्य: कुक: इसके अनुसार फिर कुक के लिये न्यास ।