पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४०६

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अनेकवर्णसमीकरणम् | मा.१२ । क्षे. ७ । हरतष्टे धनक्षेपे, इंसरीति से न्यास । 1 हा. ५ । उक्लरीति से वल्ली आई उससे लब्धि गुण १० हुए फिर 'क्षेपल- २ भा. १२ । क्षे. २ | २. क्षणलाभाट्या-' इसके अनुसार १ जोड़देने से लब्धि ११ हुई इस प्रकार ११ ये लब्धि गुण हुए यहां लब्धि १९ नीलक का मान और ४ 6 गुण ४ हरितक का मान है अब श्वेतक १ इट कल्पना करने से ' इष्टा- हतस्वस्वहरे ~~-' इसके अनुसार सक्षेप लब्धि गुण हुंए । , श्वे १२ रू ११ नीलक श्वे५ रू ४ हरितक यहां श्वे ५ रू ४ इस हरितक मानसे हृ ३ रू. २ पीतक ह ४ रू ३ लोहितक इन पूर्वानीत अन्तिम पीतक लोहितक के मान में चाहिये तात्पर्य यह है कि जिसवर्ण का मान जहां पर पहिले जिस मान के अभ्यन्तर में होने वहां उसी वर्ष में उचित है । जैसा, हरितक का श्वे ५ रू ४ यह मान है तो ३ हरि- तक का क्या, यों श्वे १५ रू १२, हुआ अब रूप १२ में रूप २ जोड़ देने से पीतक का मान श्वे १५ रू १४ हुआ इसी भांति- यदि १ हरितक का श्वे ५ रू ४ यह मान है तो ४ हरितक का क्या, यो उत्थापन देना व्याया वह वर्ण उत्थापन देना