पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३७

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

बाजगारणत- उभयोर्व्यत्यासे न्यासः । या रूपं । या योगे जातम् या ३ 6 अथोदाहरणान्याह- स्वमव्यक्तमिति । 'एकरूपयुक्तमेकं धन- मव्यक्तम्, इत्येकः पक्षः | ‘ भी रूप रहितं धनमव्ययुग्मम्, इति द्वितीयः पक्षः । एतयोः पक्षयोः संकलने किं फलं स्यात् । अथ पक्षयोर्धन विपर्यस्य विपर्यासं विधाय युतौ किं फलं स्यात् । इह पूर्वपक्षमात्रव्यत्ययेन उत्तरपक्षमात्रव्यत्ययेन उभयपक्षव्यत्ययेन च मश्नत्रयं व्यत्ययाभावे चैक इत्युदाहरणचतुष्टयं द्रष्टव्यम् । 'धन' इत्यत्र भावप्रधानो निर्देशः ॥ उदाहरण- यावत्तावत् एक और रूप एक यह पहिला पक्ष है और यावत्तावत् दो रूप आठॠण यह दूसरा पक्ष हैं। अब इन दोनों पक्षोंका योग क्या होगा और यदि पहिले दूसरे पक्ष के और दोनों पक्ष के ऋण धन चिह्न बदल दिये जावें तो योग क्या होगा |

J ( १ ) न्यास | या १ रू १ । या २ रू है । यहां पर पहिले पक्षमें यावत्तावत् १ का और रूप १ का योग २ नहीं होता क्योंकि वे एक- जाति के नहीं हैं, इस कारण एक पक्ति में लिखने से एकपक्ष सिद्ध हुआ, प्रथमपक्ष =या १ रू १ | इसीप्रकार धन यावत्तावत् २ में से रूप ८ को घटाना है तो ' संशोध्यमानं स्वमुणत्वमेति --' इस सूत्र के अनुसार रूप ऋण हुआ, अब इन दोनों धन ऋणों का 'धनर्णयोरन्तरमेव योग: ' सूत्र के अनुसार ऋण योग नहीं होता किंतु एकजाति के न होने से अलग अलग स्थापित किये गये तो दूसरा पक्ष सिद्ध हुआ, द्वितीयपक्ष = या २ रू है। योग के लिये दोनों पक्षोंका न्यास । -