पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३६७

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बीजगणिते-- सूत्रार्थ ---- उद्दिष्ट दो राशि का योगवर्ग और उनका चौगुना इनका अन्तर उन दो राशि के अन्तरवर्ग के समान होता है जैसा दो अव्यक्तों का ॥ उपपत्ति- C कल्पना किया कि ५ ३ राशि हैं, और राशि योग के समान चड़ा चतुर्भुज क्षेत्र है उसके चारों कोण पर राशितुल्य भुजबाले चार यायतक्षेत्र हैं और मध्यमें राश्यन्तर के समान चतुर्भुज है। (मू.क्षे.दे.) यहां प्रत्येक आयतक्षेत्र में राशिघात फल है तो चार आयतक्षेत्र का चतुर्गुण राशि- घात फल होगा | योगरूप बड़े क्षेत्र में चार घटा देने से राश्यन्तर [cap वर्ग के समान चतुर्भुज अवशिष्ट रहता है और उसका फल सश्यन्तर का वर्ग है इससे 'चतुर्गुणस्य ---' यह सूत्र उपपन्न हुआ। इसी भांति या १ | का १ ये राशि हैं, इनके योग या १ का १ के वर्ग याव १ या. का २ काब १ में इन्हींका चतुर्गुण घात या. का ४ घटादेने से राश्यन्तर या १ का १ का वर्ग यांव १ या. का रं काय १ शेष रहता है इसलिये ' द्वयोरव्यक्तयोर्यथा' यह कहा है । उदाहरणम्- चत्वारिंशतिर्येषां दो कोटिश्रवसां वद । भुजकोटिवधो येषु शतं विंशतिसंयुतम् ॥ ७७ ॥ किल भुजकोट्योर्वधो द्विगुणः २४० तद्युति- वर्गस्य वर्गयोगस्य चान्तर(यो हि भुजकोट्योर्वर्गयोगः स एवं कर्णवर्गः, तो भुज़कोटियुतिवर्गस्य कर्ण- वर्गस्य चान्तरमिदं २४० योगान्तरघातसमं स्यात् ।