पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३६८

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एकवर्णमध्यमाहरणम् | अत इदमन्तरं २४० योगेनानेन ४० भक्तं जातं भुज- कोटियुतिकर्णान्तरं ६ 'योगोऽन्तरेणोन युतोऽर्षित-' इत्यादिना संक्रमणेन जातो भुजकोटियोगः २३ । कर्ण: १७ । 'चतुर्गुणस्य घातस्य - ' इति भुजकोटि- युतिवर्गादस्मात् ५२६ चतुर्गुणघातेऽस्मिन् ४८० शोधिते शेष जातो दोः कोट्यन्तरवर्गः ४६ । अस्य मूलम् ७ । इदं दोः कोटिविवरं ' योगोऽन्तरेणोनयु तोऽर्धितः' इति जाते भुजकोटी ८ | १५ | , उदाहरण-- भुज, कोट और कर्ण इनका चात चालीस हैं और भुज कोटि का घात दोसौ चालीस है तो कही भुज, कोटि कर्ण क्या हैं । कल्पना किया कि कर्ण का मान या १ है इसको ४० में घटा देनेसे भुज कोटि का योग शेष रहा या १ रू. ४० इसका वर्ग याव १ या ६० रू १६०० हुआ यह भुजकोटि के योगका वर्ग है इसमें द्विगुण भुजकोटि घात २४० घटादेने से मुजकोटिका वर्गयोग शेष रहा यात्र १ या ६० रू १३६० यह कर्णवर्ग के समान है इसलिये समीकरण के

  • अर्थ न्यास |

याव १ या ८० रू १३६० याव १ या० सभीकरण करने से यावत्तावत् का मान १७ च्याया इसको सर्वयोग ४० में घटादेने से भुजकोटि योग २३ रहा | इस भांति अव्यक्त क्रिया ४६