पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३६४

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एकवर्णमध्यमाहरणम् । ३५७ में १ जोड़ने से ३ हुए इनका वर्ग १ हुआ इसमें ३ जोड़ने से १२ हुए इनका वर्ग १४४ हुआ यह कोटि और कर्ण इनके वर्गीका अन्तर है. वह योगान्तरघात के समान है इसलिये १४४ इसमें कोटिकर्णान्तर २ का भाग देने से कोटि कर्ण का योग ७२ हुआ बाद 'योगोऽन्तरेखोनयु- तोऽधितस्तौ – इस संक्रमणरीति से कोटि ३५ कर्ण ३७ हुए || अब वर्गान्तर योगान्तर घातके तुल्य होता है इसकी युक्ति दिखलाते हैं -- जैसा सात के समान चतुर्भुज में पांच के समान चतुर्भुज को घटा देने से शेष रहा। ( मू.क्षे.दे. ) यहां शेष पहिला आायत जो रहा उसका राश्यन्तर तुल्य विस्तार और बृहदाशिके तुल्य दैर्ध्य है तथा दूसरे का लघु राशि के तुल्य विस्तार और राश्यन्तर के तुल्य दैर्ध्य है । यह वर्गान्तर का स्वरूप है क्योंकि दोनों समचतुर्भुजही राशिके वर्ग हैं। अब पहिले आयत में दूसरे आयत को जोड़ने से ऐसा स्वरूप हुआ (मू.क्षे.दे.) इस क्षेत्र का राशियोग के तुल्य दैर्ध्य और राश्यन्तर के तुल्य विस्तार है, आयतक्षेत्र में भुज कोटि का घात फल होता है इस लिये राशियोगान्तर का घात क्षेत्रफल हुआ यही वर्गान्तर है इससे उक्करीति की वासना स्पष्ट प्रकाशित होती है || प्रकारान्तर से उपपत्ति ---- यो रं 'योगोऽन्तरेखोन युतोऽर्वितस्तौ राशी --' इस सूत्र के अनुसार यो १ अं१ये राशि हैं इनके वर्ग यो १ यो.अंत्र्यंब१ योव१यो. २व्यंव१ २ २ ४ त्यो १यो. २१ को दूसरे वर्ग हुए अब पहिले वर्ग- यो. अं४ त्योव १यो. अं२व १ में घटा देने से शेष -रहा इसमें हर ४ का भाग देने से यो. ४ हुआ | इससे ' योगान्तरघात एव वर्गान्तिरम्' यह सिद्ध होता है | १