पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३६१

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३५४ वीजगणिते - समीकरण द्वारा यावत्तावर्ग का मान ६२५ श्राया इसका मूल २५ यावत्तावत् का मान हुआ यही की है || उक्तरीत के सूत्रका अर्थ- दो अव्यक्त राशिके भांति भुज और कोटिका दूना घात उनके अन्तरवर्ग से युत वर्गयोगके समान होता है । (मू.क्षे.दे.) यहांपर भी भुज कोटि क रूप चार जात्यक्षेत्र हैं तथा भुजकोट्यन्तरवर्गात्मक क्षेत्र है, यह संपूर्ण क्षेत्र वर्ग और भुजवर्ग इनका योगरूप दीखता है क्योंकि बृहद्राशिके समान चतुर्भुज क्षेत्र ऊपर और लघुराशिके समान चतुर्भुज क्षेत्र उसके नीचे एक दिशामें है और उन दोनों के क्षेत्रफल राशिवर्ग के समान हैं इस भांति क्षेत्र के पर्यालोचनसे ' दोःकोटयन्तरवर्गेण ( राश्योरन्तरवर्गेण ) द्विघ्नो बातः समन्वितः । वर्गयोगसमः स स्यात् -- यह किया निकलती है। यहाँ राशि के वर्गयोग में उनका दूना घाल घटादेने से अन्तरवर्ग अवशिष्ट रहता है और अन्तर्वर्ग को वटादेने से उनका दूना घात अवशिष्ट रहता है। अथवा, राशि हैं या १ का १ इनके अन्तर या १ का १ का वर्ग याव १ या. 1 का २ का १ हुआ इसमें उनका दूना घात या.का २ जोड़ देने से मध्यम खण्ड उड़गया तो याव १ काब १ यह राशिवर्गयोग के समान . शेष रहा इस लिये ' द्वयोरव्यक्तयोर्यथा ' कहा है ॥ उदाहरणम्- भुजाल्यूनात्पदं व्येकं कोटिकर्णान्तरं सखे । यत्र तत्र वद क्षेत्रे दोः कोटिश्रवणान्मम ॥ ७६ ॥ अत्र कोटिकर्णान्तरमिष्टम् २ भुजः १२ तद्यथा - कल्पितमिष्टम् २ अस्य सरूपस्य ३ विलोमेन - १ अत्र दोः कोटयोरित्युपलक्षणम् ।