पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३६०

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एकवर्णमध्यमाहरणम् | ३५३ इन पर से समीकरण के द्वारा यावत्तावत् वर्ग का मान ६२५ आया इसका मूल ३५ क का मान है इससे ' तत्कृत्योर्योगपदं कर्म:--'यह पाटीस्थ सूत्र उपपन्न हुआ । यावत्तावत् २५ के मान से बाबाधामों में उत्थापन देने से बाधा ६ | १६ हुई उन पर से लम्ब १२ माया || प्रकारान्तर से उपपत्ति- भुजकोटिकर्णरूप जात्यत्र्यसू को चारों कोणों में इसभांति लिखो जिसमें कर्णसमान चतुर्भुज उत्पन्न हो और उसके अन्तर्गत भुजकोट्यन्तर के समान चतुर्भुज़ होवे (सू.क्षे. दे.) यहां दो दो जात्य क्षेत्रों को प्रतिलोम जोड़ने से भुज कोटि रूप दो भुर्जों से दो आयतक्षेत्र उत्पन्न होते हैं, क्योंकि आयतक्षेत्र में कर्णरेखा खींचने से दो जात्यक्षेत्र बनते हैं तो उनके योगसे आयतका बनना क्या आश्चर्य है । और वहां क्षेत्रफल 'तथायते तद्भुजकोटिघात:-- इस सूत्रके अनुसार भुजकोटिघातरूप होता है । इभांतिदत के फलों का योग दूंना भुजकोटिवात भु.को २ हुआ। अथवा, जात्य में भुजकोटिके घातका आधा क्षेत्रफल होता है तो एक मु.को१. "हुआ इसको चतुर्गुण करने से चार जात्यक्षेत्र के h जात्यकी फल- २ फल योग के समान भुको ४ = भु. को २ हुआ ( इससे भी पहिली बात पाई जाती है ) इसमें भुजकोटयन्तर के तुल्य जो चतुर्भुज उत्पन्न हुआ है

  • उसका भुजकोटयन्तरवर्ग के समान क्षेत्रफल जोड़ देने से कर्ण वर्ग

भु. को. २ यंत्र १ हुआ क्योंकि कर्णसम चतुर्भुज में कर्णवर्गही फल होता है अब भु. को. २१ = रु ६२५ यह यावत्तावन्मित कर्ण वर्ग के समान है । याव० रु ६२५ याव१ रू०