पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३५९

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बीजगणिते- अथान्यदुदाहरणमनुष्टुभाह-क्षेत्र इति । यत्र क्षेत्रे दोःकोटी • तिथिन खै: तुल्ये वर्तेते तत्र का श्रुतिर्भवति । अस्य रूढस्य प्रसि द्धस्य ' तत्कृत्योयोगपदं कर्ण:- ' इति गणितस्योपपत्तिर्वासना कथ्यताम् ।। ३५२ उदाहरण-Srkris (सम्भाषणम्) जिस क्षेत्र में भुज १५ और कोटि २० है वहां कर्ण क्या होगा तथा 'भुज कोटि के वर्गयोगका मूल कर्ण होता है ' इस प्रसिद्ध गणितकी उपपत्ति क्या है।. कल्पना किया कि या १ कर्ण का मान है, अब कर्णको भूमि और भुज कोटि को भुज कल्पना करने से क्षेत्र की स्थिति पलट गई तब भुजों के संपात से लम्ब डाला (मूळ क्षे, दे० ) यहां लम्ब के वश से दो त्रिभुज क उत्पन्न हुए, भुजाश्रित आबाघा भुज, लम्ब कोटि और पहिला भुज २५ कर्ण, यह एक त्र्यस्त्र हुआ | कोट्याश्रित आबाधा भुज, लबोट और पहिली कोटि २० कर्ण, यह दूसरा व्यत्र हुआ । अनुपात - यदि यावत्ता- वत् कर्ण में पहिला भुज १५ आता है तो पहिले भुजरूप कर १५ में ३२५ क्या, यो भुजरूप भुजाश्रित आबाघा रूयार हुई । यदि यावत्तावत् कर्ण में पहिली कोटि २० आती है तो पहिली कोटिरूप कर्ण २० में क्या, भुजरूप कोटयाश्रित आबाधा रू हुई। उन दोनों बाधाका ४०० C यो या१ ६२५ योगधारभूमि या १ के समान हैं इसलिये समच्छेद और छेदग करने से पक्ष हुए याव०: रु ६३५ याव १ रू०