पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३५

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............... बीजगणिते - C स्तौ | तथा तयोः समानजात्योः पूर्वोक्को योगोऽन्तरं वा स्यात् । 'स्यात्' इति पदमुत्तरदलस्थमन्वेति देहलीदीपन्यायेन । ' समानजात्योः' इत्युपलक्षणम् । तेन समानजातीनामित्यपि दृष्टव्यम् । विभिन्ना जातिर्ययोस्तौ । तयोयोगेऽन्तरे वा क्रियमाणे पृथक् स्थितिरेव स्यात् । अयमभिप्रायः- रूपस्य रूपेण, यावत्तावतो यावत्तावता, कालकस्य कालकेन, यावत्तावर्गस्य यावत्तावद्वर्गेण, यावचावधनस्य यावत्तावद्धनेन, एवं कालक- वर्गस्य कालकवर्गेण, कालकघनस्य कालकघनेन, कालकनील- कभावितस्य कालकनीलकभावितेन, एवं समानजात्योयोगेऽन्तरे वा कर्तव्ये योगोऽन्तरं वा प्रोक्नवद्भवति | रूपस्य यावत्तावता का लकादिना वा, एवं भिन्नजात्योर्योऽन्तरे वा पृथकस्थितिरेव । अत्रैकाविति द्रष्टव्यम् । अन्यथा योगान्तरज्ञापकाभावादिति ॥ अव्यक्तराशि के जोड़ने और घटाने का प्रकार ---- यावत्तावत् आदि जो अव्यक्तराशियों के द्योतक वर्ण कल्पना किये हैं, वे सजातीय कहिये एकजाति के हो तो उनका योग और अन्तर कहे हुए प्रकार से करो और यदि विजातीय हो तो एक पङ्क्ति में लिखदो इस प्रकार किया करने से योग और अन्तर होगा। यहांपर साजात्य ( एकजातिपना ) इस भांति जानना योग्य है कि रूप का रूप के साथ, यावत्तावतका यावत्तावत के साथ यावत्तावतवर्ग का यावत्तावतवर्ग के साथ, यावत्तावतघनका यावत्तावतघन के साथ, कालक का कालक के साथ, कालकवर्ग का कालकवर्ग के साथ, कालकघन का कालकघन के साथ इसी प्रकार उन उन वर्गों के चतुर्धात पञ्चधात यदि उन्हीं वर्गों के चतुत पश्चात आदि के सजातीय होते हैं और यात्रत्तावत, यावत्ता- वर्ग, यावत्तावद्धन, कालक, कालकवर्ग, काल आदि विजातीय कहलाते हैं । यह बात उदाहरणों पर और भी स्पष्ट प्रतीत होगी ॥ उपपत्ति- इसकी युक्ति प्रतिस्पष्ट है कि पैसे ५ रुपये और -