पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३४७

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..बीजगणिते- इन पर से समीकरण के द्वारा द्विविध यात्रतावत् का मान आया ६० ४५ 5 | यहां पर दूसरी छाया ६ चौदह से १४ न्यून होने के सबब अनुपपन्न है इसलिये पहिली छाया ली है। उसका वर्ग 3०२५ हुआ इसमें है समच्छेद करके १२ जोड़ने से तो२६८ हुआ इसका मूल २ ४५ में घटा देने से २ है।

इसका तृतीयांश हुआ इसमें ३ का अपवर्तन देने से १ हुआ इसको २ • शेष रहा बाद हर २ का भाग देने से १४ Tag छाया लव्वि आई यही इष्ट था । इस भांति द्विविध मान के आने पर भी कहीं कहीं एकही मान उपपन्न होता है इसलिये आचार्य ने ' व्यक्तपक्षस्य तन्मूलं-' इस पद्मनाभ के सूत्र में दूषणं दिया है, तात्पर्य यह है कि पद्मनाभ ने अपने सूत्र में 'कचित् ' यह पद नहीं दिया इस कारण से सत्र द्विविध मानकी प्राप्ति हुई परन्तु ग्रन्थकार ने द्विविधं कचित्तत् ' "यह कहकर उस (विमान ) का प्रायिकत्व दिखलाया। उदाहरणम्-

चारो राशयः के ते मूलदा ये दिसंयुताः । द्वयोर्दयोर्यथासन्नवाताश्वाष्टादशान्विताः||७३|| मूलदाः सर्वमूलैक्यादेकादशयुतात्पदम् । त्रयोदश सखे जातं बीजज्ञ वद तान्मम ॥ ७४ ॥ अत्र राशिर्डेन तो मूलदो भवति स किल राशि- क्षेपः । मूलयोरन्तरवर्गेण हतो राशिक्षेपो वधक्षेपो भ- बति तयो राश्योर्वधस्तेन युतोऽयं मूलदः स्यादि-