पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३४४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

एकमध्यमारम् | रहा इसका वर्ग ४६ हुआ इसमें १ दृश्य जोड़ देने से ५० हुआ यह राशि के समान है । और यदि यहां पर | C पञ्चांशस्त्रिच्युतो यूथाद्वर्गितो गहरं गतः । दृष्ट: शाखामृग: शाखामारूढो वद ते कति || , ऐसा प्रश्न हो तो दूसराही मान उपपन्न होता है जैसा-पूर्वानीत दूसरा मान ५ है इसका पांचवां भाग १ हुआ इसको ३ में बढ़ा दिया तो २ शेष रहा उसका वर्ग ४ हुआ इसमें दृश्य १ जोड़ने से ५ हुआ यही राशि है । और पहिला मान अनुपपन्न होता है जैसा-पूर्वानीत प हिला मान ५० है उसका पांचवां भाग १० हुआ यह तीन में नहीं घटता | परन्तु ऐसे स्थल में भी छालाप मिलता है किन्तु लोकप्रतीति नहीं होती इसी अभिप्राय से आचार्य ने ' अव्यक्तमानं द्विविधं कत्रितत्र यह कहा है ॥ उदाहरणम्- कर्णस्य त्रिवेना द्वादशाङ्गुलशकुमा । चतुर्दशाङ्गुला जाता गणक ब्रूहि तां द्रुतम्॥७२॥ अत्र छाया या १ इयं कर्णत्र्यंशोना चतुर्दशाङ्गुला जाता तो वैपरीत्येनास्याश्चतुर्दश विशोषय शेषे कर्णत्र्यंशः या १ रू १४ अयं त्रिगुणो जातः कर्णः या ३ रू ४२ अस्य वर्गः याव या २५२ रू १७६४ कर्णवर्गेणानेन याव १ रू १४४ सम इति समशोधने कृते जातो पक्षों याव ८ या २५२ रु० याव : या ० रु १६२०