पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३४२

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मध्यमाहरणम् | याव १ या ५५ रू० याव ● या० रु २५० चतुर्भि: संगुण्य पञ्चपञ्चाशदर्ग ३०२५ प्रक्षिप्य मूले या २ रु ५५ या ० रु ४५ यत्रापि प्राग्वलब्धं द्विविधं यावत्तावन्मानम्५०/५ द्वितीयमत्र न ग्राह्यमनुपपन्नत्वात् । नहि व्यक्ते ऋण- गते लोकस्य प्रतीतिरस्तीति । - अय द्विधामानस्थ काचिकत्वमदर्शनार्थमुदाहरशद्वय मनुष्ये नाभिहितं तत्र प्रथमं यथा-थादिति । यथात् वानराणां कुलात् पञ्चांशकः पञ्चमो भागः त्रिभिरूनो वर्गितः गहरं पर्वतगुहां गतः । एक: शाखामृगो मर्कटः कस्यचित्पादपस्य शाखामारूटो दृष्टः । एवं ते कतीति वद | वाक्यार्थः कर्म ॥ उदाहरण--- बांदरों के यूथ से पांचवां हिस्सा तीन से घटा हुआ तथा वर्गित किसी पर्वतकी कन्दराको चला गया और एक बांदर वृक्षकी डाल पर बैठा हुआ दीखा तो बतलाओ के कितने हैं । कल्पना किया कि यूथ का मान या १ है, इसका पांचवां हिस्सा या १ ५ शेष रहा इसका वर्ग या १ रू १५ हुआ इसमें ३ घटा देने से याव१याई ०८२२५ ५ हुआ, यह पृथके तुल्य हैं इसलिये समीकरण के अर्थ न्यास | हुआ इसमें इष्ट १ जोड़ने से याव १ या३० रु२५०