पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३३३

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बीजगणिते -- शून्ये गुण के जाते खं हारश्चेत्पुनस्तदा राशिः । अविकृत एव ज्ञेयः- सर्वत्रैवं विपश्चिद्भिः || अथान्यदुदाहरणमनुष्टुभाह- क इति । को राशि: स्व सहित: खगुणो वर्गितः स्वपढ़ाभ्यां युतः स्वस्य द्विगुणमूलेन सहित इत्यर्थ: । खेन भक्तः एवं कृते पञ्चदश जातः संपन्नः, भवता उच्यतां कथ्यताम् || उदाहरण - -- वह कौन राशि है जिसको अपने आधे से युक्त करके शून्य से गुशा देते हैं और उसके वर्ग में उसीका दूना मूल जोड़कर शून्य का भागदेते हैं तो पन्द्रह होता है । कल्पना किया कि या १ राशि है इसको अपने आधे या किया या इसीका दूना मूल या --- 13 हुआ अब इसे शून्यसे गुणदेना चाहिये तो 'खगुणश्चिन्त्यश्च २ ३४० शेषविधौ ' इसके सार या ३x२ २ हुआ इसका वर्ग - समच्छेद करके जोड़ने से से यावह याव ६ या १२ युक्त हुआ इसमें २ यावह या १२ हुआ ४ इसमें शून्यका भाग देना है तो तुल्य गुणक और हारको उड़ा देनेसे अधि- याव या १२ कृत ही रह अर्थ न्यास | यह १५ के समान है इसलिये समीकरण के