पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३१९

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बीजगणिते - याव ह या १२ रू ४ यात्र० या ० रू १२१ एवं सूत्रयस्यापि तत्र तत्र व्याप्तिरवसेयेति । ३१२ आचार्य ने मूलानयन के लिये 'पक्षौ तदेष्टेन निहत्य' इत्यादि बहुत कुछ कहा परन्तु पक्षों में क्या जोड़ना चाहिये और उनको किस से गुणना चाहिये इस बात को सुगमता के साथ दिखलाने के लिये श्रीधरा- चार्य के सूत्रको लिखा है उसका यह अर्थ है --- पक्षों के मूल लेने के लिये उनको चतुर्गुणित अव्यक्तवर्गाङ्कसे गुण दो और गुणन के पहिले जो अव्य हैं। उनके वर्ग के तुल्य रूप उनमें जोड़ दो, यों करने से अव्यक्त पक्ष और दूसरा पक्ष पूरा वर्ग होगा क्योंकि वे दोनों पक्ष समान हैं । ' जो समीकरण में अव्यक्त के वर्ग की संख्या एक हो और अव्यक्त की संख्या सम अर्थात् २, ४, ६, ८, इत्यादि हो तो उसमें उस सम संख्या के आधे के वर्ग को जोड़ देने से पक्ष मूलप्रद होंगे । " यदि अव्यक्त के वर्ग की संख्या एक न होवे और अव्यक्त क संख्या सम हो तो उनको व्यक्त के वर्ग की संख्या से गुण दो और उस असंख्य वर्ग को जोड़ दो यों पक्षों का मूल मिलेगा।' यत्र पक्षयोः समशोधने सत्येकस्मिन्पक्षेऽव्यक्तवर्गा दिकं स्यादन्यपक्षे रूपाण्येव तत्र द्वावपि पक्षौ केनचि देकेनेष्टेन तथा गुग्यौ भाज्यौ वा तथा किंचित्समं क्षेप्यं शोध्यं वा यथाव्यक्तपक्षो मूलदः स्यात् तस्मिन १ यह क्रमसे 'कवर्गः " इन दोनों सूत्रों की व्याख्या है।.