पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३११

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श्रीजगणिते- अथान्यदुदाहरखमार्यपाह- पश्चदर्शति । अत्र लम्बज्ञानायें बेशवन्तराल भूमिज्ञानं नावश्यकमिति ज्ञापयितुं 'भूमि क्योः' इति वेणुविशेषणं दत्तम् | व्याख्यातोऽपि लीलावती- विवरणे ॥ , उदाहरगा-- किसी समान धरातल पर पन्द्रह और दश हाथ ऊंचे दो बाँस हैं उन में एक की जड़ से दूसरे के शिर पै और दूसरे की जड़ से पहिले के शिर सूत बाँधने से जो सूतों का संपात होगा उससे जो लम्ब डाला जाये उसका क्या मान होगा, परन्तु वहां पर उन दोनों बाँसों के मध्य की भूमि अज्ञात हैं। क्रिया निर्वाह के वास्ते बाँसों के मध्य की भूमि को २० इष्ट कल्पना किया और सूतों के मिलने से जो संपात उत्पन्न हुआ है उससे जो लम्ब डाला गया है उस का मान यावत्तावत् १ कल्पना किया यदि १५ कोटि में २० भुज तो यावत्तावन्मित कोटि में क्या, यो अनुपात से भुज या • इसमें पांच का देने से छोटे बाँस के पोर हुई | यदि १० कोटि में २० भुज तो लम्बरूप कोटि में १५ ४ की क्या, यों बड़े बाँस के ओर की याबाधा या २ हुई | इनका समच्छेद १० करने से योग या हुआ यह २० के समान हैं इसलिये समीकर- ३ सार्थ न्यास | या या० रु २० समच्छेद छेदगम और समीकरण करने से यावत्तावत् का मान ४ ६ आया, यही लम्ब का मान है | इससे या । या २ इन में उत्थापन देने से बाधा ८ | १२ हुई |