पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३१

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बीजगणिते- , किया क्योंकि जिस राशि में ३ को जोड़ना है वह राशि भिन्न है अर्थात् उसके नीचे शून्य का छेद लगा हुआ है। फिर 'अन्योन्यहाराभिहती ह रांशों- इस प्रकार से समच्छेद करके उन दो राशियों का योग वा अन्तर करने से कुछ विकार नहीं पड़ा अर्थात् वह योग और से उत्पन होनेवाला राशिस्वरूप समान रहा। न्यास में ३ को जोड़ने के लिये समच्छेद करने से 3 + ऐसा स्वरूप हुआ फिर इनका योग : कही -अविकृत राशि हुआ । इसी प्रकार अन्सर करने से वही राशि आया है । यहांपर स्वरूप में विकार नहीं पड़ा परन्तु मिन्नाङ्क के साथ योग या अन्तर करने से पूर्वोक्त राशि में विकार पड़ेगा। जैसे में को जो- ड़ना है तो समच्छेद करने से+: ऐसा स्वरूप हुआ इनका योग है हुआ । यदि ऐसा कथन करो कि एक राशि के छेद से दूसरे राशि के छेदांश को गुण देने से समान छेद होजाने पर आगेका श्रम व्यर्थ है। जैसे प्रकृत में खहर राशि के शून्य हर से दूसरे राशि के छेद और को गुण देने से ये समान छेद वाले होगये अब इनका योग अथवा अन्तर करने से कुछ भी विकार नहीं है तो खहर, खहर राशि के योग अथान्तर करने में अवश्य विकार होगा 4 जैसे+ये दो हर राशि हैं इन के तुल्य हर होने से योग हुआ । इस अवस्था में के क्योंकर कहते हैं कि विकार नहीं हुआ, पर वास्तव ( असल ) में वही पर भी फल में विकार नहीं हुआ किन्तु स्वरूपमात्र में देखो ऐसा नहीं होता कि ३ तीन में शून्य का भाग देने से और फल मिले और में भागदेने से और, किन्तु दोनों स्थान में अनन्तता का व्यभिचार 1 ८ नहीं होता । जैसे उनताशजीवारूप शकु में हरण्याभुज तो इष्टद्वादशाङ्गुल आदि शकु में क्या, इस प्रकार त्रैराशिक से सिद्धान्त में छायासाधन किया है। उदयकाल में उतांश की जीवा का अभाव होता है और हग्ज्या