पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

२३ भगवन्तमनन्तं स्तौति- खपड्डिधम् | अयात्रहरराशेरविकारतादृष्टान्तमसङ्गेन अस्मिन्निति | मलयाले कल्पान्तसमये भगवति श्वर्यसंपने अनन्ते अन्तरहिते अभ्युते विष्णौ बहुष्वपि भूतगयेषु प्रविष्टेषु खीनेषु । अपि वा सृष्टिकाले निःसृतेषु देहादिमत्तया भगवतो ऽच्युतात्पृथग्भूतेष्वपि यद्वद्विकारो नास्ति । नहि तेषु प्रविष्टेषु महान् भवति निःसृतेषु वा लघुर्भवति । तथास्मिन् खहरे राशावपि बहु- ष्वपि राशिषु प्रविष्टेषु निःसृतेषु वा विकारो नास्तीति | उपजाति- वृत्तमेतत् ।। ६ ।। " इति द्विवेंदोपाख्पाचार्यश्रीसरयूप्रसादसुत-दुर्गाप्रसादो नीते लीलावतीहृदयग्राहिणि वीजविलासिनि रुषड़िधविवरणं समाप्तम् ।। . इस खहर राशि में कोई राशि जोड़ दियेजावें अथवा घटादिये जायें तो भी कुछ त्रिकार नहीं होता जैसे प्रलयकाल में परमेश्वर के शरीर में अनेक जीव प्रविष्ठ होते हैं और सृष्टि काल में निकल आते हैं तो भी उस पर मेश्वर के शरीर में कुछ विकार नहीं होता कि जीवों के प्रविष्ट होने से मोटा और निकलने से दुबला होजावे । यद्यपि इस खहर राशि में मिलाक के जोड़ने यादि से स्वरूप में विकार पड़जाता है तो भी उसकी लब्धि का अनन्तत्व (अनन्तपना ) नहीं नष्ट होता । जैसे अवतारों के भेद होने से उस परमेश्वर के स्वरूप में तो अन्तर पड़जाता है पर अभीष्ट फलदातृत्व में विकार नहीं होता । ऐसाही खहर राशि को जानना चाहिये ॥ ६ ॥ अब इस खहर राशि के विषय में छात्रजनों की व्युत्पत्ति के लिये कुछ विशेष वर्णन करते हैं ---जैसे इस खहरराशि में ३ जोड़ना है तो 'कल्प्यो हरो रूपमहारराशे;" इस व्यक्तगणित की रीति के अनुसार १ हर कल्पना ३