पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२८८

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एकवर्णसमीकरणम् । २८१ क३६६६ २इन करणियों में भाग देनेसे यावत्तावन्मानक ४ क ८ या यहाँ पहिली करणी ४ का ऋणात्मकायाश्च तथा करण्या:--' इस सूत्र के अनुसार मूल रू. ३ हुआ इस प्रकार छोटी अबाधा रू २ क द हुई। र इसको भूमि रू १ क १८ में ' योगं करण्यो:-' इस सूत्र के अनुसार घटा . देने से दूसरी आबाधा रू १ क २ हुई | अब यावत्तावन्मान से लम्बवर्ग में उत्थापन देने के लिये उसका न्यास | 6. I याव १ ख १५ क २०० इस लम्बवर्ग में पहिला खण्ड याब रं है इसलिये क ४ क ८ इस यावत्तावन्मान का वर्ग करना चाहिये तो पूर्व रीति से उसका वर्ग आ क४ क क १६ क १२८ क ६४ रु १२ क १२८ यह यावत्तावत्वर्ग का मान यावत्तावत्वर्ग १ के ऋणगत होने से ऋणरूप हूँ से गुण देने से ऋण यावत्तावत् वर्ग का मान हुआ रू १२ क १२८ | और उत्तर खण्ड रू. १५६२०० व्यक्त है इसलिये यथास्थित रहा, अत्र ‘ धनर्णयोरन्तरमेव योग : ' इस सूत्र के अनुसार रू १२ रू १५ इन रूपों का योग रू. हुआ, और क १२८ २०० इन करणियों का अनुसार अथवा 'आदौ करण्याव- पवर्तनीयौ --- इस युक्तिसिद्ध रीति के अनुसार क के हुआ इस भांति लम्बवर्ग 'रू ३ क ८' हुआ । अन्तर ' योगं करण्योः...... इस सूत्र इसी प्रकार दूसरे लम्ब वर्ग का उत्थापन के अर्थ न्यास यात्र १ या रं या. क ७२ रु १३ क. ७२ यहां पहिले तीन खण्ड अव्यक्तात्मक हैं तो पूर्वरीति के अनुसार पहिले खगड यावत्तावत्वर्ग १ का मान रू १२ क १२८ हुआ, और दूसरा आगा