पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२५९

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बीजगणिते - यहां गुणक ५ है, एकोनगुणक ४ का कल्पितफल ४ के वर्ग १६ में भाग देने से दूसरा मूलधन ४ आया, इसमें फलवर्ग १६ जोड़देने से पहिला मूलधन २० हुआ। अब इससे कालका आनयन करते हैं -- यदि सौका एक ब्याजहै तो बीस का क्या, यों एक मास में पहिले मूलधन का हुआ, यदि इस ब्याज में एक महीना तो कल्पना ब्याज १X२० १०० २५२ किये हुए चार ब्याज में क्या, यों ५X ? × ४ काल १ प्रकार यह उदाहरण अपनी बुद्धिही से सिद्ध होता है यावत्तावत् कल्पना ` की क्या व्यावश्यकता है' इस लेखसे ग्रन्थकारका पूर्वाचार्यों पर कटाक्ष सूचित होता है । = २० आया 'इस बुद्धिव बीजम् । तथा च गोले मयोक्कम- 'नैव वर्णात्मकं बीजं नबीजानिपृथक् पृथक् । एकमेव मतिर्बीजमनल्पा कल्पना यतः ॥' MADURA - MAANDA अब प्रशंसापूर्वक मति में बीजत्व का आरोप करते हैं- अथवा बुद्धिही बीजगणित है, इस बातको मैंने गोलाध्याय में कहा अर्थात् यावत्तावत्कालक आदि वर्णरूपी बीजगणित नहीं है और एकवर्णसमीकरण, अनेक समीकरण इत्यादि भेदों से जुदा जुदा भी नहीं है किंतु एक मति बीजगणित है जिससे अनेक विकी कल्पना उत्पन्न होती है || कि व उदाहरणम्- माणिक्याष्टकमिन्द्रनीलदशकं मुक्काफलानां शतं सत्राणि च पञ्चरत्नवाणिजां येषा चतुर्णां धनम् ।