पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२५७

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बीनगमिते- उत्थापनदेना चाहिये तो 'वर्गेण वर्ग गुणयेत् इस रीति के वर्ग ६४ से ऋण यावसावत् १ को गुणने से ६४ हुए और = से यात्रता- वत् १६ को गुणनेसे १२८ हुए इनका कम न्यास ६४ | १२८ अन इनके योग ६४ में हर १६ का भाग देनेसे दूसरा भूलधन ४ या। और पहिला दूसरा व्याज हुआ | २ १२ । अउस प्र उत्तरको व्यक्तरीति से करते हैं- APAPPH में पहिले प्रमाण फल में दूसरे प्रमाण फल का भाग देने से जो लब्धि आती है उससे गुणेहुए दूसरे मूलधन के तुल्य पहिला मूलघन होता है, अन्यथा क्योंकर समान काल में समान फल ( व्याज ) होगा | इस लिये दूसरे घनका २ गुण है, और दूसरा धन एकोनगुण गु १ रूरं से गुणदेने से गु० दूध १ दूध १ फलवर्गका स्वरूप होता है, क्योंकि पहिला खण्ड गु० दूध १ पहिला मूलधन है इस में दूसरे खण्ड दूध १ को घटा देने से फलवर्ग अवशिष्ट रहता है क्योंकि दूसरा मूलधन और फलवर्ग इनका योग पहिले मूलधन के समान है और पहिले मूलधन फलवर्ग को घटादेनेसे दूसरा मूलधन अवशिष्ट रहता है यह भी कहा है | यदि एक से ऊन गुण और दूसरा मूलधन इनका बात फलवर्ग है तो उसी फलवर्ग में एकोन गुणका भागदेने से दूसरा मूलधनाता सिद्ध हुआ । इसलिये कल्पना किये हुए व्याज २ के वर्ग ४ में एकोन गुण १ का भाग देने से दूसरा धन ४ चाया, इसमें फल २ के वर्ग ४ को जोड़ देने से पहिला वन हुआ । इसलिये कल्पित फतवर्ग ४ हैं | इसभांति दोनों मूलधन हुए ८ | ४ और फल २ है यदि सौका पांच ब्याज पाते हैं तो आठ का क्या, इस प्रकार आठ का व्याज यह हुआ इसमें २० का अपवर्तन देने से यदि इस व्याज में एक