पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२५२

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एकवर्णसमीकरणम् । २४५ अत्रालिकुलप्रमाणं यावत्तावत् १ | अतः कदम्बा- दिगतालिप्रमाणं यावत्तावत् १* एतद् दृष्टेन भ्रमरेण युतमलिप्रमाणमिति न्यासः । याेरू १५ एतौ समच्छेदीकृत्य वेदगमे पूर्ववल्लव्धं यावत्ताव- न्मानम् १५ एतदलिप्रमाणम् || पाटीस्थं प्रदर्शयति-पञ्चांश इति । व्याख्यातो- त्र्यं श्लोको लीलावतीव्याख्याने || उदाहरण-~-~- एक भ्रमरों के समूह से उसका पञ्चमांश कदम्ब को गया और तृतीयांश शिलीन्धूनामक पुष्प को गया, और उन भागोंके त्रिगुण अन्तरके तुल्य भ्रमर कुटजनामक पुष्प को गये, केवल एक केतकी और मालतीके सुगन्ध लोहुआ आकाश भ्रमण कर रहा है तो कहो कितने भ्रमर हैं । यहां भ्रमरों के समूह का मान यावत्तावत् १ है, इसका पञ्चमांश या और तृतीयांश या हुआ, इनके अन्तरयाको ३ से गुणा या हुआ, इसमें ३ का अपवर्तन देनेसे हुआ, फिर उक्त यायाया भागों का समच्छेद करने से योग या ३ हुआ, इसमें दृष्ट भ्रमर १ जोड़ देने से पहिला पक्ष हुआ याहरू १५ यह यावत्तावत् एकके समान है इस लिये दो पक्ष हुए A १४ यापू या १ बाद समच्छेद और वेदगम करने से पूर्वरीति के अनुसार यावत्तावत् का मान १५ याया यही भ्रमरों के समूह की संख्या है ?