पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२५

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बीनगणिते- अब योग्य योजक में योज्य के समान तब योजक के तुल्य योगज फल होगा। इस लिये कहा है कि शून्य को किसी राशि में जोड़ दो अथवा शून्य में किसी राशि को जोड़ दो तो भी वह राशि ज्यों का त्यों रहता ॥ घंटाने की दो संख्या में बड़ी संख्या को वियोज्य और छोटी को वियोजक कहते हैं | वियोज्य का वियोजक के तुल्य ह्रास होने से अन्तर सिद्ध होता है और वियोजक का जितना ह्रास होगा उतनाही अन्तर की वृद्धि होगी। अब जो वियोजक के तुल्य वियोजक का ह्रास हो तो अ न्तर में वियोग्य तुल्य वृद्धि होगी अर्थात् वियोज्य संख्या के तुल्य अन्तर सिद्ध होगा | इस लिये कहा है कि शून्य को किसी राशि में घटाने से उसका मान नहीं बिगड़ता | वियोज्य का जैसा जैसा हास होता जावेगा • पैसाही अन्तर का भी ह्रास होगा यह बात प्रसिद्ध है। जैसा वियोज्य ५ और वियोजक ३ है तो अन्तर २ हुआ, अब यहां 8 वियोज्य रक्खा तो अन्तर १ हुआ, ३ वियोग्य वसा तो अस्तर हुआ २ वियोज्य रक्खा तो अन्तर १ हुआ, १ वियोज्य रक्खा तो अन्तर २ हुआ, और ० शून्य वियोज्य रक्खा तो अन्तर हुआ । इस लिये कहा है कि शून्य में किसी राशि को घटादेने से उसके धंन ऋण चिह्न बदल जाते हैं अर्थात् वह धन हो तो ऋण और ऋण हो तो धन होजाता है। इससे 'खयोगे वियोगे धनी तथैव-- ' यह सूत्र उपपन्न हुआ उदाहरणम् - रूपत्रयं स्वं क्षयगं च खं च किं स्यात्खयुक्तं वद खच्युतं च ॥ न्यासः / रू ३रू ३ रू० । एतानि खयुतान्यविकृतान्येव । न्यासः रू३रू ३० । एतानिखाच्च्युतानिरू ३७३रू० ॥ इति खसंकलनव्यवकलने । १ बहुत्र “खाच्च्युतम्' इति पाठो दृश्यते स प्रामादिक एव ।