पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२३४

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एकवर्णसमीकरणम् । २२७ चाहिये । जिस उदाहरण में दो तीन आदत राशि होवें वहां एक अव्यक्त का मान एक यावत्तावत् कल्पना करके और अव्यक्तराशियों का मान दो तीन आदि इष्ट से गुणित वा भाजित, इष्टरूपों से ऊन वायुक्त यावत्तावत् कल्पना करो। अथवा एक का यावत्तावत् औौरों का व्यक्तमान कल्पना करो | इस भांति जैसा क्रियाका निर्वाह होसकै वैसा व्यक्त अथवा अव्यक्त मान कल्पना करना चाहिये, ये सब बात वक्ष्यमाण उदाहरणों से भलीभांति स्पष्ट होंगी ॥ उपपत्ति -- अज्ञात राशिका मान यावत्तावत् कल्पना करके बाद उक्त रीति के अनुसार दो पक्ष तुल्य किये जाते हैं, वहां तुल्य दो पक्षों में तुल्पही जोड़ चा वढा देने से और उनको तुल्यही किसी राशि से गुण वा भाग देने से उनका तुल्यत्व नहीं नष्ट होता । यह बात अत्यन्त सुप्रसिद्ध है | अ किसी एक पक्ष में जैसा राशि है उस (क्रान्ति ) का उस पक्ष से शोधन करने में वहां केवल रूपही रह जाते हैं परंतु समता के लिये दूसरे पक्ष से मीराश घटाना है इसलिये ‘एकाव्यक्तं शोधयेदन्यपक्षात्-' यह कहा है। और अन्यपक्ष में जैसा रूप राशि है उसका शोधन करने से उस पक्ष में केवल अव्यक्तराशि रहता है परंतु समता के लिये उस रूप राशिको दूसरे पक्ष के रूप राशि में घटाना है . इसलिये 'रूपाण्यन्यस्येतरस्माच पक्षात्' यह कहा है | इस भांति एक पक्ष में अव्यक्त राशि और दूसरे पक्ष में रूप राशि हुआ। अब यदि इस राशि में यह रूपराशि आता है तो कल्पित अव्यक्तराशि में क्या इस प्रकार रूपराशि, कल्पित अव्यक्तराशि से गुणा और शेष अव्यक्तराशि से भागा जाता है । यहां 'शेषाव्यक्तेनोद्धरेद्र्पशेषम् - यह बात तो कही है और कल्पित अव्यक्तराशि से गुणने का उत्थापन में अन्तरभाव है। अ अत्रा, यदि शेष अव्यक्तराशि में रूपशेषात्मक राशि पाते हैं तो एक