पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२३३

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२२६ बीजगणिते- करण बोलते हैं। जहां वर्ण वर्ग आदि को लेकर पक्षों को समान करते हैं और वर्गगत राशियों का मूल लाकर व्यक्तमान सावते हैं उसको मध्यमाहरण कहते हैं ( क्योंकि उस में वर्गराशि के मूल लेने के समय में वोईयोश्चातिहति हिनिम-' इस सूत्र के अनुसार मध्यम खण्ड का आहरण अर्थात् दूरीकरण होता है इसलिये उसका मध्यमा हरण नाम रक्खा है ) और जिस स्थान में भावित को लेकर पक्षों का साम्य किया जाता है उसे भावित कहते हैं । पहिले एकवर्णसमीकरणको रीति लिखते हैं---- । उद्दिष्ट उदाहरण में जो अव्यक्त राशि हो उसका यावत्तावत् १, २, ३, आदि मान कल्पना करके प्रश्नकर्ता के आलाप ( भाषण ) के अनुसार गुणन, भजन, नैराशिक, पञ्चराशिक, श्रेढी और क्षेत्र आदिक की क्रियाओं को करो जिससे समान दो पक्ष सिद्ध हों । यदि आप में पक्ष समान न हों तो एक पक्ष में कुछ जोड़ या घटाकर अथवा उसको किसी से गुण या भागकर समान करलो | और उन दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के अव्यक्त आदिकों को दूसरे पक्ष के अव्यक्त आदिकों में शुद्ध करो, और दूसरे पक्ष के रूपों को पहिले पक्ष के रूपों में शुद्ध करो। आय यह है कि जिस पक्ष में व्यक्तों को शुद्ध किया है उससे भिन्न पक्ष में रूपों को शुद्ध करो । यदि करणी हों तो उन्हें भी उक्त प्रकार से शुद्ध करो | फिर अव्यक्त राशिके क्षेत्र का शेष में भाग देने से जो लब्धि आवै वह एक अव्यक्त राशिका व्यक्त मान है । उसका कल्पित व्यक्त राशि में उत्थापन दो । आशय यह है कि 'यदि एक श्रव्य राशि का "यह व्यक्तमान आता है तो कल्पित व्यक्त राशि क्या' इस भांति त्रैराशिक के द्वारा कल्पका जो व्यक्तमान उत्पन्न हो उसे पूर्व अव्यक्त • राशिको मिटाकर स्थापन करना चाहिये । इसीभांति यावत्तावत् वर्ग, धन · आदिकों में भी लब्ध व्यक्तमान के वर्ग घन आदिकों से उत्थापन देना