पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२२०

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चक्रवालम् | २१३ होगा। तात्पर्य यह है कि 'तत्राभ्यासः क्षेपयोः क्षेपक: स्यात्' इस सूत्रके अनुसार रूपक्षेप से गुणा हुआ कोई धन अथवा ऋणक्षेप ज्यों का त्यों रहैगा ॥ अब पहिले जो कह आये हैं कि 'अपनीमति के अनुसार पदों को सिद्ध करो' वहां पर प्रकारान्तर दिखलाते हैं उद्दिष्ट प्रकृति में किसी वर्ग राशि का अपवर्तन दो और उसके मूल का कनिष्ठ में भाग दो वह कनिष्ठ होगा और ज्येष्ठ यथास्थित रहेगा || उपपत्ति--- के प्रकृति में किसी वर्ग राशि का अपवर्तन देने से ज्येष्ठ का वर्ग भी उसी (वर्गराशि ) से अपवर्तित होता है इसलिये ज्येष्ठ उस ( वर्गराशि ) मूल से अपवर्तित होगा परन्तु कनिष्ट न अपवर्तित होगा क्योंकि उस ( कनिष्ठ ) में प्रकृति प्रयुक्त कोई विशेष नहीं है कि जिससे प्रकृति गुणी अथवा भागी जावे तो कनिष्ठ भी गुणा या भागा जाने इसलिये उस ( वर्गराशि ) के मूल का कनिष्ठ में भाग देना कहा है और ज्येष्ठ तो प्रथमही भाजित हुआ है । इसीभांति यह भी जानना चाहिये कि प्रकृति को किसी वर्गराशि से गुणदो और उस गुणित प्रकृतिपरसे कनिष्ठ ज्येष्ठ सिद्ध करके उसके मूल से कनिष्ठ को गुण दो, इससे 'वर्गच्छिन्ने गुणे इस्त्र तत्पदेन विभाजयेत्' यह उपपन्न हुआ || उदाहरणम्- द्वात्रिंशद्गुणितो वर्गः कः सैको मूलदो वद | न्यासः । ३२ | अतः प्राग्वज्जाते कनिष्ठज्ये- ठे २ | ३ अथवा ' वर्गच्छिन्ने गुणे ह्रस्वं तत्पदेन विभा- जयेत्' इति प्रकृतिः ३२ चतुश्विना लब्गम् = अ स्यां प्रकृतौ कनिष्ठज्येष्ठे ११३ येन वर्गेण प्रकृति- → C