पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२१७

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श्रीजगणिते- में जोड़ देने गुण दिया तो १ | २ हुए, बाद इन्हें लब्धि गुणों २ | से ३ | ३ ये लब्धि गुण हुए | अब गुण ३ के वर्ग ६ को प्रकृति १३ में घटादेने से शेप ४ रहा, इसमें ऋणक्षेप का भाग देने से ४ क्षेप या और 'व्यस्तः प्रकृतितरच्युते -' इसके अनुसार वह क्षेपधन हुआ ४, लब्धि ३ कनिष्टहैं, इसके वर्ग २ को प्रकृति १३ से गुणा ११७ हुआ, इसमें क्षेप ४ जोड़ने से १२१ हुआ, इस का मूल ११ ज्येष्ठ है । उनका क्रम से न्यास | क ३ ज्ये ११ क्षे ४ अब कुट्टक के लिये न्यास | मा. ३ | क्षे ११ । हा. ४ । 'हरतष्टे धनक्षेपे----' इसके अनुसार न्यास | भा. ३/३ । वल्ली १ O ३ उक्तविधि से दो राशि हुए, क्षेपतक्षणलाभ २ को लब्धि ३ में जोड़ देनेंसे लब्धि गुरु हुए गुण ३ के वर्ग र को प्रकृति १३ में घटाने से ४ शेष रहा, इसमें पूर्वक्षेप ४ का भागदेने से १ क्षेप आया, वह 'व्यस्तः प्रकृतितश्च्युते' इसके अनुसार ऋण हुआ है । और कनिष्ठ है, इसकेवर्ग २५ को प्रकृति १३ से गुण ३२५ हुआ, इसमें क्षेप १ घटाने से ३२४ शेष रहा, इसका मूल १८ ज्येष्ठहुआ | इनका ५ यथाक्रम न्यास | क५ ज्ये १८ से १ यहांपर सर्वत्र पदोका रूपक्षेष पदोंके साथ भावना देनेसे घानन्त्यहोगा। ( २ ) उदाहरण में प्रकृति = है । यह २ | २ इनके वर्गों ४ १४ का योग है । इस लिये १ में २ का भाग देने से कनिष्ठ हुआ।