पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२१३

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बीजगणिते- अलग गुण देने से १०० | २२५ ये भी वर्ग हुए, इनका योग ३२५. दश और पंद्रह इनका वर्गयोग है, और यह संपूर्ण प्रकृति १३ से गुणे हुए कनिष्ठवर्ग १३x२५ = ३२५ के समान है। अब वह इनके वर्गयोग ३२५ के तुल्य है इस लिये ३२५ में १० का वर्ग १०० घटा देने से १५ का वर्ग २२५ अवशिष्ट रहता है और १५ का वर्ग २२५ घटा देने से १० का वर्ग १०० शेष बचता है इसलिये ऋणक्षेप १०० और ज्येष्ठ १५ । अथवा, ऋणक्षेप २२५ और ज्येष्ठ १० हुआ | अब--- क५ ज्ये १५ क्षे १०० → इन पर से इष्ट १० मानकर रूपशुद्धि में पद हुए क ५ ज्ये १५. १० इससे 'रूपशुद्धौ खिलोद्दिष्टं वर्गयोगो गुणो न चेत् ' यह उपपन्न हुआ । जिनका वर्गयोग प्रकृति है उनके मूलों २ । ३ का अलग अलग रूप में भाग देने से हुए कनिष्ठ अथवा | अब कनिष्ठ का वर्ग करने से के स्थान में रूप और हरके स्थान में मूलका वर्ग हुआ कहै इसको प्रकृति १३ से गुण देने से अंश के स्थान में प्रकृति की तुल्यता हुई कब उस में ऋणक्षेप १ घटाना है तो समच्छेद करने से हरकी समता हुई ४ बाद ४ को भाज्य १३ में घटादेने से दूसरे मूल ३ का वर्ग ६ अवशिष्ट रहेगा क्योंकि भाज्य (अंश) दोनों मूल २।३ के वर्गयोग १३ के समान है। इसी भांति कनिष्टई का वर्ग है हुआ, इस को प्रकृति १३ से गुणने से ३३ हुए, अब यहां भी हर र से ऋणक्षेप १ को गुणने से हरकी समता हुई, उस हं को प्रकृति ( अंश) १३ में घटा देने से पहिले मूल २ का वर्ग ४ अवशिष्ट रहा। इससे 'अखिले कृतिमूला - भ्यां द्विधा रूपं विभाजितम् । द्विधा हस्वपदं' यह भी उपपन्न हुआ ||