पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२१२

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. चक्रवालम् | २०५ रूपशुद्धि में दुष्ट उदाहरण का ज्ञान और सुटु उदाहरण होनेपर प्रका- रान्तरसे पदानयन का प्रकार- + रूपशुद्रि अर्थात् १ ऋणक्षेप में यदि गुण ( प्रकृति ) वर्गों का योग न हो तो उस उद्दिष्टको खिल अर्थात् दुष्ट जानो, तात्पर्य यह है कि किसीका वर्ग उस प्रकृति से गुणा और रूपोन मूलप्रद न होगा | इस भांति यदि उद्दिष्ट दुष्ट न होवे तो जिन वर्गों का योग प्रकृति है तिनके मूलों का अलग अलग रूप में भाग देने से दो प्रकार के कनिष्ठ रूप शुद्धि में होगें । और उन कनिष्ठोंपर से 'तस्य वर्ग प्रकृत्या क्षुण्ण:- • इस सूत्र के अनुसार ज्येष्ठ भी दो प्रकार के होंगे। अथवा ' इष्टं ह्रस्वं.' इस रीति के अनुसार चार आदि क्षेपमें पदानयन करके बाद ‘इष्टवर्गहृतः क्षेपः क्षेप: स्यात्' इस सूत्र से रूपशुद्धिं में पदों का आनन करो ॥ उपपत्ति- जो ऋणक्षेप वर्गरूप होवे तो उसके मूल को इष्ट कल्पना करके 'इष्टवर्गहृतः क्षेपः --' इस रीति से ऋणक्षेप १ संभव होता है, परन्तु ऋणक्षेप वर्गरूप तभी होगा यदि प्रकृति से गुणाहुआ कनिष्ठवर्ग वर्गयोग- रूपी होवे इस लिये एक वर्ग का शोधन करने से दूसरा वर्ग अवशिष्ट रहेगा और वहीं क्षेप है। जैसा - २ | ३ इनके वर्ग ४ १६ हुए, इन के योग १३ में इष्ट राशि के वर्ग ४ को घटा देने से दूसरे राशि ३ का वर्ग ६ शेष रहा के यहांपर यदि प्रकृति वर्गयोगरूप होवे तो कानष्टवर्ग प्रकृतिगुणित भी वर्गयोगरूप अनुमान किया जावे क्योंकि वर्गरूप खण्डों से कनिष्ठ को अलग अलग गुण देने से दोनों खण्ड भी वर्गरूप रहते हैं और उनका योग वर्गयोग होता है वही संपूर्ण प्रकृति से गुणित कनिष्ठ का वर्ग होता है। जैसा-४ । ९ वर्गराशि का योग १३ प्रकृति है । अब कल्पित कनिष्ठ ५ के वर्ग २५ को उन वर्गात्मक खण्डों ४ | से अलग १