पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भागहार का भाज्य और भाजक धन या ऋण एक धन हो और दूसरा ऋण हो तो बीजगणिते - प्रकार --- होवे तो लब्धि धनी है यदि लब्धि ऋण आवेगी ॥ भागहार गुणन के समान संपूर्ण क्रिया करने को कही है। जैसा- गुखन में धन धन का या ऋण ऋण का घात धन होता है, वैसाही यहां पर धन राशि में धन राशि का या ऋण राशि में ऋण का भाग देने से लब्धि धन मिलैगी, क्योंकि धन या ऋण राशियों का घात धनही होता है। इसी प्रकार भाज्य और भाजक में कोई एक धन होवे और दूसरा ऋण तो भी लब्धि ऋण आवेगी, क्योंकि धन और ऋण का घात ऋण होता है । और हर लब्धि का घात सर्वत्र भाग्य राशि के समान हैं। इससे " भागहारे -- यह उपपन्न हुआ | उपपत्ति--- उदाहरण-- धन आठ में धन चार का, वा ऋण आठ में ॠण चार का, वा ऋण आठ में धन चार का, अथवा धन आठ में ऋण चार का भाग देने से क्या लब्धि मिलैगी ॥ धन ४ का भाग देने से ऋण ४ का भाग देने से में धन ४ का भांग देने से धन रु २ लब्धि मिली ॥ ( १ ) न्यास 1 रूरू ४ | धन धन रु २ लब्धि मिली ॥ ( ३ ) न्यास | रू ऋण रू ३ लब्धि मिली ॥ ( २ ) न्यास | रू ८ रू ४ । ऋण रू ४ | ऋण ( ४ ) न्यास । रू ८ रू ४ । धन ८ में ऋण ४ का भाग देने से ऋण रु २ लब्धि मिली || धन और ऋऋण राशि के भागहार का प्रकार समाप्त हुआ ।