पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२०९

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२०२ वीजगणिते- यहाँ कनिष्ठ ज्येष्टों के बज्राभ्यासों ५६६७ । ५८६७ का ऐक्य ११६३४ कनिष्ठ हुआ। कनिष्ठों का वात ७२६ प्रकृति ६७ गुणने से ४८८४३ हुआ, इसमें ज्येष्ठाभ्यास ४८८४१ को जोड़ने से २७६८४ ज्येष्ठ हुआ | और क्षेत्रों २।२ का घात ४ क्षेप हुआ । इनका यथाक्रम न्यास क ११९३४ ज्ये ६७६८४ क्षे ४ यहां इष्ट २ कल्पना करके 'इष्टवर्गहृतः क्षेप:- रूपक्षेप में कनिष्ठ, ज्येष्ठ और क्षेप सिद्ध हुए क ५६६७ ज्ये ४८८४२ क्षे १

- इस सूत्र के अनुसार

( २ ) उदाहरण में इष्ट १ को कनिष्ठ और ३ को क्षेप मानकर न्यास | क १ ज्ये ८ क्ष ३ अब इनका कुट्टक के लिये न्यास । भा. १ । क्षे. ' हरतष्टे धनक्षेपे हा ३। --' इसके अनुसार न्यास । भा. १ क्षे. २ । चल्ली • O उक्तरीति से दो राशि हुए २ लब्धि के वैषम्य से अपने अपने क्षणों में शुद्ध हुए १ बाद क्षेपतक्षण लग्ध २ से जुड़ी हुई लब्धि वास्तव हुई ३ इस प्रकार लब्धि गुण सिद्ध हुए ३ 'इष्टाहतस्वस्वहरेण —' इसके अनु- सार २ इष्ट कल्पना करने से लब्धि गुणहुए यहां गुण ७ के वर्ग ४६ को प्रकृति ६१ में घटा देने से शेष १२ बचा, इस में क्षेप ३ का भाग देने से क्षेप ४ आया, ( यह ' व्यस्तः प्रकृतितरच्युते' इसके अनुसार ऋण हुआ ४ | और गुण ७ की लब्धि ५ कनिष्ठ है, इसका वर्ग २५