पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२०८

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+ हरतष्टे धनक्षेपे-~

चक्रवालम् | - इस सूत्रके अनुसार वल्ली १ २ ? ६ बाद दौराशि हुए 25 तक्षणों से तष्टित करने से हुए ५ लब्धि विषम १२ २०१ २ रहीं इसकारण ११ । ७ इन अपने अपने तक्षणों में शुद्ध करने से लब्धि गुण हुए ३ क्षेपतक्षणलाभ १२ से युक्त हुई लब्धि वास्तव लब्धि गुण ६ हर के ऋण होने से लब्धि भी ऋण हुई, इसप्रकार सक्षेप- क्षे ११ ल १६ २ लब्धि गुण हुए क्षे ७ गु २ गुण २ के वर्ग ४ को प्रकृति ६७ में घटा देने से शेष ६३ अल्प नहीं रहता इस कारण ऋणरूप १ इष्ट मानकर उससे हार उं को गुणने से धन ७ हुए इन ७ को गुण २ में जोड़ देने से गुण ६ हुआ । इसी भांति इष्ट १ से भाज्य ११ को गुणकर लब्धि १६ में जोड़ देने से लब्धि २७ हुई, यह कनिष्ठपद है इसे पूर्व रीति से धन कल्पना कर लिया अब कनिष्ठ २७ का वर्ग ७२९ प्रकृति ६७ से गुणने से ४८८८४३ हुआ, इसमें क्षेप २ घटा देने से ४८८८४१ शेष रहा, इसका मूल २२१ ज्येष्ठ हुआ और गुण १ के वर्ग ८१ में प्रकृति ६७ को घटा १ देने से १४ शेष बचा, इसमें ऋणक्षेप ७ का भाग देने से ऋणक्षेप २ लब्ध आया । इस प्रकार कनिष्ठ ज्येष्ट, और क्षेप हुए क २७ उये २२१ २ इन का तुल्य भावना के लिये न्यास | क २७ ज्ये २२१ क्षे २ क २७ ज्ये २२१ क्षे