पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२०७

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बीजगणिते- जोड़कर १२३ और क्षेप ई का भाग देने से ४१ ज्येष्ठपद सिद्ध हुआ, अब इसे भी कनिष्ठ के भांति धन मानने से वही ज्येष्ठ हुआ ४१ / इस प्रकार सर्वत्र जानो । अब इनका फिर कुक के लिये न्यास | भा. ५ । क्षे. ४१ । ' हरतष्टे धनक्षेपे---' इस के अनुसार न्यास । भा. ५ । क्षे, ५ । वल्ली O १ धू ●उतरीति से लब्धि गुण हुए तक्षण लाभ ६ से युक्त लब्धि वास्तव सब्धि होती है तो लब्धि गुणहुए ६१ गुण ५ के वर्ग २५ को प्रकृति ६७ में घटा देने से शेष ४२ रहा इस में क्षेप ६ का भाग देने से ७ ब्धि और 'व्यस्तः प्रकृतितश्श्युते' इस के अनुसार क्षेप उं ऋण हुआ। और लब्धि ११ कनिष्ठ है, इस ११ के वर्ग २२१ को प्रकृति ६७ से गुणकर ८१०७ और क्षेप ७ से घटा कर ८१०० मूल ज्येष्ठ १० अथवा ' पूर्वं ज्येष्ठं गुणाभ्यस्तं- ' इस सूत्र के अनुसार येष्ठ ४१ को गुण ५ से गुणकर २०५ उस में प्रकृति ६७ से गुणेहुए कनिष्ठ ६७X५८३३५ को जोड़कर ५४० उसमें क्षेप ६ का भाग देने से ज्येष्ठ २० हुआ इस भांति कनिष्ठ, ज्येष्ठ और क्षेप हुए क ११ ज्ये १० क्षे ७ इनका कुक के लिये न्यास । मा. ११ । क्षे. ६० । हा, ॐ ।