पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२०६

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चक्रवालम् | ' हरतष्टे भनक्षेपे---' इस सूत्रके अनुसार न्यास । भा. १ । क्षे, २ । बल्ली • २ १६६ ८ तक्षणों से शुद्ध हुए बाद उक्त रीति से लब्धि गुण हुए ३ लब्धि के वैषम्य से अपने २ 'क्षेपतक्षणलाभाढ्या लब्धिः -- ' इस सूत्र के अनुसार लब्धि गुण हुए यहां -- हरके ऋण होने से लब्धि ऋण हुई क्योंकि भाज्य १ को गुण १ से गुणकर १ उसमें क्षेप ८ जोड़कर ९ ऋण हार ३ का भाग देने से लब्धि ३ का ऋणत्व सिद्ध होता है गुण १ के वर्ग १ को प्रकृति ६७ में घटा देने से शेष ६६ अल्प नहीं बचता इस कारण रूप दो २ ऋण इष्ट मानकर ' इष्टाहतस्वस्वहरेण - ' इस रीति के अनुसार लब्धि गुण हुए गुण ७ के वर्ग ४९ को प्रकृति ६७ में घटा देने से शेष १८ रहा, इसमें पहिले क्षेप ३ का भाग देने से लब्धि ६ ऋण मिली, यह क्षेप गुणवर्ग को प्रकृति में घटा देने से व्यस्त हुआ अर्थात् धनक्षेप ६ हुआ | और लब्धि कनिष्ठपद पंहुई, इसके ऋण अथवा धन होने से इष्टं ह्रस्वं तस्य वर्ग: ? इत्यादि अगिली क्रिया में कुछ विशेष नहीं होता इसलिये कनिष्ठ ५ वन हुआ, अब उस ५ के वर्ग २५ को प्रकृति ६७ से गुणकर १६७५ उसमें क्षेप ६ जोड़ देने से १६८९ ज्येष्ठ मूल ४१ आया । अथवा 'पूर्व ज्येष्ठ गुणाभ्यस्तं प्रकृतिघ्नकनिष्टयुक् । क्षेपोद्धृतं वक्रवाले ज्येष्ठं वा प्रकृतं भवेत् || , इस उक्तवासनासिद्ध सूत्र के अनुसार पहिले ज्येष्ठ ८ को गुण ७ से गुणकर ५६ उसमें प्रकृति ६७ से गुणे हुए कनिष्ठ ६७+१=६७ को

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