पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१९८

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चक्रवालम् | यह प्रकृति से गुण ने से हुआ इस भांति कव, प्रव १ क्षे. प्र १ अभिमत स्वरूप हुआ इव. कव. प्र १ इ. क ज्ये. प्र २ कव. प्रव १ क्षे. प्र १ क्षेत्र १ इससे स्पष्ट है कि इ. क. ज्ये. प्र २ कव. प्रव १ क्षे. प्र १ क्षेत्र १ ज्येष्ठ इतना प्रकृति से गुणे हुए कनिष्ठ के वर्ग में अधिक है, वर्ग के लिये पूर्व युक्ति के अनुसार क्षेप से भागा गुणवर्ग क्षेप्य है, अधिक के दो खण्ड किये पहिला खण्ड = इ. क. ज्ये. प्र २ कब प्रव १ श्रेय १ क्षे. प्र १ झ १ दूसरा खण्ड =. क्षेत्र १ क्षे १ अब अपवर्तित दूसरा खण्ड क्षिप्त है; पर क्षेत्र से भागा हुआ गुणवर्ग क्षेप्य है, और क्षेप भागा हुआ गुणवर्ग प्रकृति का अन्तर भी क्षेप्य है, ऐसी स्थिति में क्षेप से भागा हुआ गुणका वर्गही क्षिप्त होता है, इस- लिये कहा है कि ‘तथा प्रकृतितश्च्युते' गुणवर्गे प्रकृत्योनेऽथ वाल्पं शेषकं यथा, तत्तु क्षेपहृतं क्षेपः, इति । यदि प्रकृति से गुणवर्ग अधिक हो तो उस अवस्था में क्षेप से भागा हुआ गुणवर्ग और प्रकृति इनका अन्तर योग्य है क्योंकि क्षिप्त न्यून है 4 यदि गुणवर्ग न्यून हो तो क्षेप से भागा हुआ गुणवर्ग और प्रकृति इनका [अन्तर शोध्य है क्योंकि क्षिप्त अधिक है। इसलिये कहा है कि व्यस्त : प्रकृतितश्च्युते । 6

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