पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१९७

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बीजगणिते - करनी चाहिये लब्धि कनिष्ठ और गुण इष्ट होगा इसलिये गुणका वर्ग पूर्व क्षेप से भागा हुआ क्षेप होता है और ज्येष्ट भी गुण से गुणित क्षेप से भक्त ज्येष्ठ होता है । पर यो क्षेप बड़ा होता है. इसकारण आचार्य ने यत्नान्तर किया है - कनिष्ठ को भाज्य ' ज्येष्ठ को क्षेप और क्षेप को हार मानकर गुण लब्धि सिद्ध की है और पहिले गुणगुणित कनिष्ठ क्षेप से भागा कनिष्ठ होता रहा अब गुणगुणित कनिष्ठ ज्येष्ठ से जुड़ा कनिष्ठ होता है इसलिये क्षेपभक्त ज्येष्ठ कनिष्ठ में अधिक हुआ, अब प्रकृति से गुणे हुए कनिष्ठ के वर्ग में क्या अधिक हुआ सो विचार करते हैं--- पूर्व सिद्ध कनिष्ठ इ. क १ s इव. कच १ क्षेत्र १ उसका वर्ग=- प्रकृति से गुणित = इध. कव. प्र १ क्षेत्र १ ज्येष्ट सिद्ध करने के लिये क्षेप व १ क्षे १ ज्येष्ठ से युक्त क्षेप से भागा कनिष्ट= इ. क १ ज्ये १ = क्षे १ उसका वर्ग==इव. कब १ इ. क. ज्ये २ ज्येव १ क्षेत्र १ प्रकृति से गुणिन= ? इव, कत्र. प्र १ इ. क. ज्ये. प्र २ ज्येव प्र १ क्षेत्र १ अन्तिम खण्डको प्रकारान्तर से सिद्ध करते हैं- प्रकृति से गुणित क्षेप •युक्त कनिष्ठवर्ग ज्येष्ठवर्ग के समान है कर. प्र २ क्षे १