पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१९६

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१८६ चक्रवालम् । इ १ को जोड़ देने से ज्येष्ट हुआ प्र. क १ इ. ज्ये १ और क्षेत्रों का घात क्षेप हुआ प्र. क्षे १ क्षे. इत्र १ अबक्षेपके तुल्य इष्ट कल्पना करके 'इष्ट वर्गहृतः क्षेपः- '. इस सूत्र के अनुसार कनिष्ठ, ज्येष्ठ और क्षेप हुए , कनिष्ठ = ज्येष्ठ क्षेप इ. क १ ज्ये १ क्षे १ प्र. क १ इ. ज्ये १ क्षे १ प्र. क्षे १ क्षे. इव १ प्र १ इव १ क्षेत्र १ यहां कनिष्ठ के अभिन्नत्व के लिये कुड्ढक द्वारा गुण का ज्ञान किया है और वह गुण इष्टसंज्ञक कनिष्ठ से गुणित ज्येष्ठ से सहित और क्षेप से भागा हुआ लब्ध होता है और वही कनिष्ठ है । इससे ' इष्टवर्ग प्रकृति से ऊन और क्षेप से भागा क्षेप होता है' यह बात सिद्ध हुई । यदि प्रकृति में इष्टवर्ग शुद्ध होवे तो ऋणशेष में क्षेप का भाग देने से ऋणगत क्षेप होगा इसलिये ' व्यस्तः प्रकृतितश्च्युते ' यह भी उपपन्न हुआ || ४ अथवा | यदि कनिष्ठ इष्ट से गुणा जाय तो क्षेप इष्टवर्ग से गुणा जायगा इस- भांति कनिष्ठ और क्षेप, हुए, इ. क १ । इव. क्षे १ अब क्षेपतुल्य इष्ट कल्पना करने से कनिष्ठ और क्षेप सिद्ध हुए, इ. क १ इव. क्षे १ 1 = १ क्षेत्र १ इष्टगुणित और क्षेपभक्त कनिष्ठ यदि कनिष्ठ कल्पना किया जाय तो क्षेप से भागा हुआ इष्टवर्ग क्षेप होगा, पर ऐसा इष्ट मानना चाहिये कि जिससे गुणा और क्षेप से भागा हुआ कनिष्ठ शुद्ध होवे तो कनिष्ठ को भाज्य क्षेपको हार कल्पना करके कुट्टकद्वारा क्षेपाभाव में गुणलब्धि सिद्ध इच १ ने १ ।