पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१९४

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d चक्रवालम् | १८७ 'कार्या' इति शेषः । चतुःक्षेपे 'इष्टवर्गहृतः --' इत्यादिना | द्विक्षेपे तु तुल्यभावनया चतुःक्षेपपदे मसाध्य पश्चात् ' इष्टवर्गहृतः इत्यादिना रूपक्षेपजे पदे वा भवतः || अब कनिष्ठ और ज्येष्ठ के अभिन्न लाने के लिये चक्रवाल नामक वर्ग प्रकृति का निरूपण करते हैं- - यहां पहिले 'इष्टं हस्त्र तस्य वर्ग:--' इस सूत्रके अनुसार कनिष्ट, ज्येष्ठ और क्षेप सिद्ध करो बाद उनको भाज्य, क्षेप और भाजक कल्पना करके कुट्टकविधि से गुण सिद्ध करो पर वह ( गुण ) ऐसा हो कि जिसके वर्ग को प्रकृति में घंटादेने से अथवा प्रकृतिही को उस में घटादेने से इस वली पर से कुट्टकद्वारा गुण ५६६७ लब्धि ४८८४२ हुईं, लब्धियों के सम होने के कारण यही रूपक्षेप में कनिष्ठ ज्येष्ठ पद हुए । और यही कनिष्ठ ज्येष्ठ स्व ज्येष्ठपदक्षेपान्-' इत्यादि प्रकार से सिद्ध किये गये हैं। लब्धि के चार श्रद्ध लेने से रूपक्षेप में वल्ली S ५ २ १ २ इस परसे कुहकद्वारा गुण १६ लब्धि १३१ | यही इट हराङ्क र वनक्षेप में कनिष्ठ और ज्येष्ठ हुए । लब्धि के तीन लेने से रूपक्षेप में वल्ली २ १ इस पर से कुहकद्वारा गुण ११ ब्धि ६० | यही इष्ट हराङ्क ७ ऋक्षेप में कनिष्ठ और ज्येह हुए | इत्यादि ||