पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१९१

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बीजगणिते- अब इनका पूर्वमूल के साथ भावना के लिये न्यास | प्र ११ । कर्पू उये २७ क्षे १ क ३ ज्ये १० क्षे १ यहां समास भावना के द्वारा नीचे लिखे हुए मूल निष्पन्न हुए क१) ८.६१ उपे ५३४ क्षे १ अथवा 'स्वं वज्राभ्यासयोरन्तरं बा- इस सूत्र के अनुसार वज्रा- भ्यास।का अन्तर कनिष्ट हुआ, औरष्ठ | ३ का यात १५ प्रकृति ११ से गुणने से १६४ हुआ, बज्राभ्यास १५०हुआ, इन दोनों का अन्तर ज्येष्ठ हुआ हूँ । क्षेपों १ | १ का बात १ क्षेप हुआ कर्पूजयेक्षे १ इनका यथाक्रम न्यास । 6 अब इष्टवर्गप्रकृत्योर्यद्विवरं तेन वा मजेत् - 'इस प्रकार के अनुसार रूपक्षेप में पद सिद्ध करते हैं- ( १ ) उदाहरण में इष्ट ३. कल्पना किया इसका वर्ग ६ हुआ, अब का और प्रकृति अन्तर १ हुआ, इसका दूने इष्ट ६ में भागदेने से ६ लब्धि मिली यही रूप- पकनिष्ठ हुआ। इस के वर्ग ३६ को प्रकृति से गुणकर | और क्षेप १ हैं । १ जोड़ने से २८८ हुए इनका मूल १७ ज्येष्ठ हुआ इनका यथाक्रम न्यास । क ६ ज्ये १७क्षे १ | अन्तर का द्वि- मिला | उसके वर्ग १ को ६ ( २ ) उदाहरण में इष्ट ३ मानकर उसका वर्ग किया तो हुआ फिर इसका और प्रकृति ११ का अन्तर २ हुआ, इस गुख इष्ट ६ में भाग देने से कनिष्ट ३ लब्ध प्रकृति ११ से गुणकर उस में १ मिलाने से १०० हुए इनका मूल १० ज्ये हुआ । और क्षेप १ हैं । इन का यथाक्रम न्यास | क ३ ज्ये १० क्षेः १ । इस प्रकार इष्ट के कल्पना करने से तथा तमास भावना और अन्दर भावना के वश से अपदसिद्ध होंगे | वर्गप्रकृति समाप्त हुई |