पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१९०

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P वर्गप्रकृतिः । घात ४ क्षेप हुआ, अब इन कनिष्ठ ज्येष्ठ और क्षेपों का क्रम से न्यास | क ६ ज्ये २० क्षे ४ यहां इष्ट २ कल्पना करके उस का वर्ग किया तो ४ हुआ, इस का क्षेप ४ में भाग देने से १ क्षेप हुआ | और इष्ट २ का पदों में भाग देने से कनिष्ठ ज्येष्ठ हुए उन का यथाक्रम न्यास | क ३ व्ये १० क्षे १ । अब समास भावना के लिये न्यास । क ३ ज्ये १० क्षे १ क ३ ज्ये १० क्ष १ } ( यहां वज्राभ्यास ३० । ३० का योग ६०. => कनिष्ठ हुआ | और कनिष्ठों ३ | ३ के बात र को प्रकृति ११ से गुणने से १६ हुआ इसमें ज्येष्ठाभ्यास १०० को जोड़ने से १९६ ष्ठ हुआ। क्षेत्र १ १ का १ क्षेप हुआ, इनका यथाक्रम न्यास । क ६० ज्ये १९९ क्षे १ । इस प्रकार भावना देने से अनेक मुल निष्पन्न होंगे || अथा। इष्ट १ को कनिष्ट कल्पना करके उसके वर्ग १ को प्र कृति ११ से गुण कर उस में क्षेप ५ जोड़ने से १६ हुए इनका मूल ४ हुआ यह ज्येष्ठ हैं। इनका क्रम से न्यास | क १ ज्ये ४ क्षे ५ और सगास भावना के लिये न्यास | क १ ज्ये ४ ५ ४ क १ अये ४५ और कनिष्ठ १ । १ के घात १ को प्रकृति १२ से गुणकर उस में ज्येष्ठाभ्यास १६ को जोड़देने से २७ ज्येष्ठ हुआ। क्षेत्रों ५५ का 'इष्टवर्गत क्षेप:-' इस सूत्र के अनुसार ५ २५ क्षेप हुआ इष्ट कल्पना करने से रूप में कनिष्ठ, ज्येष्ठ और क्षेप हुए । } वत्राभ्यासों ४ | ४ का योग = कनिष्ठहुआ |